(अ) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड में संकलित तथा श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी द्वारा लिखित ‘क्या लिखें ?’ शीर्षक ललित निबन्ध से उद्धृत है।
अथवा निम्नवत् लिखें-
पाठ का नाम क्या लिखें? लेखक का नाम-श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी।
( ब ) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या–ए० जी० गार्डिनर अंग्रेजी के प्रसिद्ध निबन्धकार हुए हैं। उन्होंने कहा है कि मन की विशेष स्थिति में ही निबन्ध लिखा जाता है। उसके लिए मन के भाव ही यथार्थ होते हैं, विषय नहीं। मनोभावों को व्यक्त करने के लिए कोई भी विषय उपयुक्त हो सकता है। निबन्ध लिखने की विशेष मनोदशा के सम्बन्ध में उनका कहना है कि उस समय मन में एक विशेष प्रकार का उत्साह और स्फूर्ति आती है और मस्तिष्क में एक विशेष प्रकार की आवेगपूर्ण स्थिति बनती है और उस आवेग को उमंग के कारण विषय की चिन्ता किये बिना निबन्ध लिखने को बाध्य होना ही पड़ता है।
द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या–श्री ए० जी० गार्डिनर के कथन को विस्तार देते हुए पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी कहते हैं कि कोई भी विषय हो लेखक उसमें अपने हृदय के आवेग को भर ही देता है। सामान्य से सामान्य विषय भी लेखक और उसके मानसिक आवेग द्वारा विशिष्ट बना दिया जाता है। उदाहरण के लिए जिस प्रकार एक हैट को टॉगने के लिए किसी भी खूटी का प्रयोग किया जा सकता है, उसी प्रकार हृदय के अनेक भाव किसी भी विषय पर व्यवस्थित रूप में व्यक्त किये जा सकते हैं। अतः असली वस्तु हैट है न कि ख़ुटी। यही अवस्था साहित्य-रचना में भी होती है; अर्थात् मन के भावे ही असली वस्तु हैं, विषय अथवा शीर्षक नहीं। तात्पर्य यह है कि यदि हृदय में भाव एवं विचार हों तो किसी भी विषय पर लिखा जा सकता है।
(स)
⦁ प्रस्तुत गद्यांश में हैट का उदाहरण मनोभावों के लिए दिया गया है और ख़ुटी का विषय के लिए। गार्डिनर महोदय के अनुसार जिस प्रकार मुख्य वस्तु हैट होती है, ख़ुटी नहीं उसी प्रकार मन के भावविचार मुख्य हैं, विषय नहीं। आशय यह है कि यदि मन में भाव एवं विचार हों तो किसी भी विषय पर लिखा जा सकता है।
⦁ विशेष मानसिक स्थिति में व्यक्ति के मन में उमंग उठती है, हृदय में स्फूर्ति आती है और मस्तिष्क में कुछ ऐसा आवेग उत्पन्न होता है कि व्यक्ति उसे अभिव्यक्ति देने के लिए लिखने बैठ जाता है।
⦁ मनोभावों को व्यक्त करने के लिए उपयुक्त विषय की आवश्यकता होती है।