(क) अनुप्रास-‘क’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
प्रतीप-“वारत काम कला निज कोटी’ यहाँ कृष्ण के सौन्दर्य को देखकर कामदेव स्वयं अपनी करोड़ों कलाएँ निछावर कर रहा है। उपमान को उपमेय बना देने के कारण यहाँ प्रतीप अलंकार है।
(ख) अनुप्रास, यमक-‘म’, ‘ध’, ‘र’ वर्गों की आवृत्ति के कारण अनुप्रास तथा एक ‘अधरान का अर्थ ‘होठों पर’ एवं दूसरे ‘अधरा न’ का अर्थ होठों पर नहीं होने के कारण यमक है।
(ग) श्लेष—यहाँ ‘रसखानि री’ के दो अर्थ–रस की खान श्रीकृष्ण तथा कवि रसखान हैं; अतः इसमें श्लेष है।