[ मेवाड़-केसरी = मेवाड़ का राजा राणा प्रताप। तमाशा = दृश्य। कपाली = काल का स्वामी] ।
सन्दर्भ-प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड में संकलित तथा ओजस्वी वाणी के कवि श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘हल्दीघाटी’ शीर्षक से उद्धृत हैं।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि श्यामनारायण पाण्डेय जी ने हल्दीघाटी की युद्धभूमि में महाराणा प्रताप द्वारा दिखाए गए रण-कौशल का दृष्टांत वर्णन किया है।
व्याख्या-उक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि ने बताया है कि हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ केसरी अर्थात् राणा प्रताप केवल युद्ध का तमाशा ही नहीं देख रहे थे, यद्यपि वह दौड़-दौड़कर इस प्रकार युद्ध कर रहे थे मानो वह मानसिंह (हल्दीघाटी के युद्ध में मानसिंह शत्रु सेना का नेतृत्व कर रहा था) के रक्त के प्यासे हों अर्थात् राणा प्रताप का रण-कौशल इतना भयानक था कि वह अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए मानसिंह की सेना परे रक्तपिपासु बनकर टूट पड़े थे।
राणा प्रताप अपने घोड़े चेतक पर सवार होकर अपनी सेना की रखवाली करते हुए इस प्रकार युद्ध कर रहे थे जैसे मानो अपने साथ मृत्यु का प्रलयकारी भीषण रूप लिए साक्षात् महाकाल युद्धभूमि में आ धमका हो।
तात्पर्य यह है कि हल्दीघाटी के युद्ध में जब शत्रुसेना का नेतृत्व करता हुआ मानसिंह युद्धभूमि में राणा प्रताप के सामने आया तो राणा प्रताप ने मानसिंह के नेतृत्व में भेजी गयी मुगल सेना में उथल-पुथल मचा दी।
काव्यगत सौन्दर्य–
⦁ हल्दीघाटी की युद्धभूमि का दृष्टांत वर्णन हुआ है।
⦁ रस–वीर रस।
⦁ शैली-ओजपूर्ण।
⦁ छन्द-मुक्त, तुकान्त।
⦁ अलंकार–श्लेष, अतिशयोक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास।
⦁ भावसाम्य-देशभक्त माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी इन पंक्तियों में ऐसा ही भाव व्यक्त किया है-
बलि होने की परवाह नहीं, मैं हूँ कष्टों का राज रहे,
मैं जीता, जीता, जीता हूँ, माता के हाथ स्वराज रहे।