फ्रांस की राज्य-क्रान्ति में टेनिस कोर्ट की सभा तथा बास्तोल जेल के पतन का विशेष महत्त्व है। इन दोनों घटनाओं का वर्णन निम्नवत् है –
1. टेनिस कोर्ट की सभा – फ्रांस को अपने चिर प्रतिद्वन्द्वी इंग्लैण्ड़ से लगातार युद्ध करने पड़ रहे थे, जिससे राजकोष खाली होता जा रहा था। फ्रांस के राजा लुई सोलहवें ने 1789 ई० में पुरानी सामन्ती सभा ‘स्टेट्स जनरल’ का अधिवेशन इस आशय से बुलाया कि वह नये कर लगाने की अनुमति दे देगी। इस सभा का पिछले 175 वर्षों से कोई अधिवेशन नहीं हुआ था। ‘स्टेट्स जनरल’ में तीनों वर्गों का प्रतिनिधित्व था, जिसमें तीसरा वर्ग बहुसंख्यक था। तीनों वर्गों का पृथक्-पृथक् अधिवेशन होता था। जनता ने करों का कड़ा विरोध करते हुए सभी वर्गों के सम्मिलित अधिवेशन की माँग की। राजा तथा कुलीन वर्ग ने इसका विरोध किया। तीसरा वर्ग, जनता वर्ग ने तब पास के टेनिस कोर्ट में एक सभा आयोजित की तथा इसे राष्ट्रीय सभा घोषित किया और संविधान बनाने की तैयारी प्रारम्भ कर दी। इसी घटना को इतिहास में टेनिस कोर्ट की सभा के नाम से जाना जाता है। यह प्रत्यक्ष विद्रोह की पहली चिंगारी थी, जिसमें राजा को जनता के समक्ष झुकना पड़ा। यह जनवर्ग की भारी विजय थी। राजा को एक सप्ताह बाद ही नेशनल असेम्बली (राष्ट्रीय महासभा) को मान्यता देनी पड़ी।
2. बास्तील का पतन – जून, 1789 ई० में राष्ट्रीय महासभा को मान्यता मिलने के बाद इसके होने वाले अधिवेशन की गतिविधियों पर पूरे फ्रांस की नजरें टिकी हुई थीं। इसी बीच जुलाई में पेरिस में यह अफवाह फैल गयी कि राजा विदेशी सेना की सहायता से देशभक्तों और क्रान्तिकारियों को कत्ल करने की योजना बना चुका है। 11 जुलाई को सम्राट ने वित्त मन्त्री नेकर को पदच्युत कर दिया। इस घटना ने जनता में पनप रही आशंका को दृढ़ कर दिया। इस पर पेरिस की जनता उत्तेजित हो उठी और तोड़-फोड़ करने लगी। 12 जुलाई, 1789 ई० को पेरिस में हो रहे उपद्रवों की सूचना पाकर बहुत-से सशस्त्र लुटेरे भी नगर में आ गये और उन्होंने सवंत्र लूट-मार, तोड़-फोड़ तथा आतंक फैलाना प्रारम्भ कर दिया। 14 जुलाई को क्रान्तिकारियों की एक भीड़ ने बास्तोल के दुर्ग पर हमला बोल दिया और दुर्ग-रक्षक देलोने की हत्या करके वहाँ पर वन्द कैदियों को रिहा कर दिया तथा वहाँ पर रग्वे हथियार लूटकर दुर्ग को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। यह घटना फ्रांस में निरंकुश शासन के पतन की पहली घटना थी, क्योंकि उस समय बास्तोल का दुर्ग राजाओं की निरंकुशता और स्वेच्छाचारिता का प्रतीक माना जाता था। इस घटना का बहुत बड़ा ऐतिहासिक महत्त्व है। इसीलिए 14 जुलाई को दिन फ्रांस में प्रतिवर्ष राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है। इन दोनों घटनाओं ने फ्रांस में क्रान्ति का स्वरूप बदल दिया। प्रतिक्रियावादी सामन्त तथा पादरी फ्रांस छोड़ने की तैयारी करने लगे, किसानों ने सामन्तों को लूटना आरम्भ कर दिया और प्रशासनिक अधिकारियों के आदेश का उल्लंघन क्रान्ति का पर्याय बन गया।