संरचना अथवा संगठन- संविधान की धारा 224 के अनुसार, भारतीय संघ में एक सर्वोच्च न्यायालय होगा। सर्वोच्च न्यायालय का संगठन इन सन्दर्भो में समझा जा सकता है। मूल संविधान में सर्वोच्च न्यायालय के लिए एक मुख्य न्यायाधीश तथा 7 अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गयी थी। सन् 2008 से संसद ने न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर 31 कर दी है। अब सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और 30 अन्य न्यायाधीश हैं। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के उन न्यायाधीशों से परामर्श करता है, जिन्हें वह आवश्यक समझे। सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के समय राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश से मन्त्रणा कर लेता है। संवैधानिक अध्यक्ष होने के कारण राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् के परामर्श से ही नियुक्तियाँ करता है। तदर्थ न्यायाधीश की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति की स्वीकृति से करता है। सर्वोच्च न्यायालय भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित है। वर्तमान में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री दीपक मिश्रा हैं।
न्यायाधीशों की योग्यताएँ– संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की निम्नलिखित योग्यताएँ (अर्हताएँ) निश्चित की गयी हैं
· वह भारत का नागरिक हो।
· उसकी आयु 65 वर्ष से कम हो।
· वह किसी उच्च न्यायालय में या ऐसे दो अथवा दो से अधिक न्यायालयों में लगातार 5 वर्ष तक । न्यायाधीश रह चुका हो।
· वह किसी उच्च न्यायालय में अथवा अन्य न्यायालयों में लगातार 10 वर्ष तक अधिवक्ता (एडवोकेट) रह चुका हो।
· राष्ट्रपति के मत से वह कोई पारंगत एवं प्रतिष्ठित विधिवेत्ता रहा हो।
शपथ-ग्रहण- न्यायाधीश को पद पर आसीन होने से पहले राष्ट्रपति के समक्ष संविधान के प्रति निष्ठा एवं निष्पक्ष रूप से कार्य करने की शपथ लेनी पड़ती है।
वेतन और भत्ते- सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को १ 2,80,000 मासिक वेतन तथा अन्य न्यायाधीशों को १ 2,50,000 मासिक वेतन मिलता है। इसके अतिरिक्त उन्हें नि:शुल्क आवास तथा यात्रा-भत्ता मिलता है। इनके वेतन-भत्ते भारत की संचित निधि से दिये जाते हैं। ये वेतन-भत्ते संसद द्वारा निश्चित किये जाते हैं। इनके कार्यकाल में ये घटाये नहीं जा सकते। सेवानिवृत्त होने पर मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों को वार्षिक पेंशन प्राप्त होती है। इन सभी सुविधाओं के उपरान्त उन पर एक प्रतिबन्ध यह है। कि वे सेवानिवृत्त होने के पश्चात् किसी न्यायालय में वकालत नहीं कर सकते। यदि राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को न्याय से सम्बन्धित कोई विशेष कार्य सौंपता है तो उस कार्य के लिए न्यायाधीश को पारिश्रमिक प्रदान किया जाता है।
कार्यकाल तथा महाभियोग- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की अवधि तक अपने पद पर कार्य करते हैं। पैंसठ वर्ष की आयु पूर्ण होने पर उन्हें सेवानिवृत्त कर दिया जाता है। इस अवधि से पूर्व वे स्वेच्छा से त्याग-पत्र दे सकते हैं अथवा संसद महाभियोग लगाकर उन्हें पदच्युत कर सकती है। न्यायाधीशों को अयोग्यता तथा कदाचार के आधार पर भी पदच्युत किया जा सकता है। इसके लिए व्यवस्था की गयी है। कि संसद के दोनों सदनों के उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत और समस्त संख्या के बहुमत से उक्त न्यायाधीश पर कदाचार अथवा असमर्थता का आरोप लगाकर राष्ट्रपति के पास विचारार्थ भेजें और राष्ट्रपति उस प्रस्ताव पर अपने हस्ताक्षर कर दे। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि महाभियोग का प्रस्ताव संसद के एक ही सत्र में स्वीकृत हो जाना चाहिए। सम्बन्धित न्यायाधीश को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का पूर्ण अवसर दिया जाता है।
अभिलेख न्यायालय- उच्चतम न्यायालय को अभिलेख न्यायालय इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उच्चतम न्यायालय अभिलेख (रिकॉर्ड) न्यायालय के रूप में भी कार्य करता है। अभिलेख न्यायालय का अर्थ यह है कि न्यायालय के समस्त निर्णयों को अभिलेख के रूप में सुरक्षित रखा जाता है। इन अभिलेखों को भविष्य में किसी भी न्यायालय के निर्णय, अन्य अधीनस्थ न्यायालयों में आवश्यकता पड़ने पर नजीर (केस लॉ) के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
भारत के उच्चतम या सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार/कार्य
भारत के सर्वोच्च या उच्चतम न्यायालय को व्यापक क्षेत्राधिकार प्राप्त हैं। इसके क्षेत्राधिकार का अध्ययन चार रूपों में किया जा सकता है–
1. प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार
2. अपीलीय क्षेत्राधिकार
3. परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार तथा
4. अन्य अधिकार।
1. प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार- कुछ विवाद ऐसे होते हैं जिन्हें केवल उच्चतम न्यायालय को ही सुनने तथा सुलझाने का अधिकार होता है। ये विवाद निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
· जब कोई विवाद भारत सरकार और एक या एक से अधिक राज्यों के बीच हो।
· जब किसी विवाद में एक ओर भारत सरकार और एक या एक से अधिक राज्य सरकारें हों तथा दूसरी ओर एक अथवा अधिक राज्य सरकारें हों।
· जब विवाद दो या दो से अधिक राज्यों के मध्य हो।
· जब विवाद राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से सम्बन्धित हो।
2. अपीलीय क्षेत्राधिकार- सर्वोच्च न्यायालय को राज्यों के उच्च न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार प्राप्त है। सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार को अग्रलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
1. संवैधानिक अपीलें- संविधान के अनुच्छेद 132 के अनुसार, जब कोई उच्च न्यायालय किसी मुकदमे के सम्बन्ध में यह प्रमाण-पत्र दे देता है कि उसमें संविधान की किसी धारा की व्याख्या का प्रश्न निहित है तो उस मुकदमे की अपील उच्चतम न्यायालय में होती है। यदि उच्च न्यायालय प्रमाण-पत्र नहीं देता है तो उच्चतम न्यायालय स्वयं भी ऐसे मामलों में अपील की आज्ञा दे सकता
2. दीवानी अपीलें- उच्च न्यायालय के प्रमाण-पत्र देने पर किसी भी दीवानी मुकदमे की अपील सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकती है।
3. फौजदारी की अपीलें- निम्नलिखित स्थितियों में फौजदारी मुकदमों की अपीलें उच्चतम न्यायालय में की जा सकती हैं
· जब उच्च न्यायालय ने किसी मुकदमे को अपने अधीन न्यायालय से मँगवाकर अपराधी को मृत्यु-दण्ड दे दिया हो।
· यदि किसी अपराधी को उच्च न्यायालय ने अपने अधीन न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध मृत्यु दण्ड दे दिया हो।
· ऐसे मुकदमों की अपील उच्चतम न्यायालय में की जा सकती है जिनके सम्बन्ध में उच्च न्यायालय इस आशय का प्रमाण-पत्र दे दे कि वह उच्चतम न्यायालय में सुनने योग्य है।
· यदि सर्वोच्च न्यायालय किसी मुकदमे में यह अनुभव करता है कि किसी व्यक्ति के साथ वास्तव में अन्याय हुआ है तो वह सैनिक न्यायालयों के अतिरिक्त किसी भी न्यायाधिकरण के विरुद्ध अपील करने की आज्ञा प्रदान कर सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय भारत के किसी भी उच्च न्यायालय या न्यायाधिकरण के निर्णय, दण्ड या आदेश के विरुद्ध संरक्षण प्रदान कर सकता है, चाहे भले ही उच्च न्यायालय ने अपील की आज्ञा से इन्कार ही क्यों न किया हो।
3. परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार-अनुच्छेद 143 – के अन्तर्गत, राष्ट्रपति द्वारा किसी कानूनी प्रश्न या विषय पर परामर्श माँगने पर सर्वोच्च न्यायालय उसे परामर्श देता है, किन्तु राष्ट्रपति ऐसे किसी भी परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं है।
4. अन्य अधिकार :
· मूल अधिकारों की रक्षा- अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये गये मौलिक अधिकारों की रक्षा का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को सौंपा गया है। इसके लिए वह आदेश, निर्देश तथा लेख (Writs) जारी करता है।
· संविधान की रक्षा एवं व्याख्या- सर्वोच्च न्यायालय संसद द्वारा पारित ऐसे कानूनों को अवैध घोषित कर सकता है, जो संविधान की किसी व्यवस्था के विरुद्ध हैं। संविधान की व्याख्या करने | का अन्तिम अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को ही प्राप्त है।
· अधीनस्थ न्यायालयों पर नियन्त्रण- सर्वोच्च न्यायालय को अधीनस्थ न्यायालयों के कार्यों की देखभाल करने तथा उन पर नियन्त्रण रखने का अधिकार होता है। यह अधीनस्थ न्यायालय से किसी मुकदमे को मॅगाकर उस पर विचार कर सकता है। यह अधीनस्थ न्यायालयों के नियमों का निर्माण भी करता है।
. पुनर्विचार का अधिकार– भारत के सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णय के पुनरावलोकन करने का भी अधिकार प्राप्त है। यदि ऐसा अनुभव हो कि उच्चतम न्यायालय निर्णय में कोई भूल कर बैठा है या उसके निर्णय में कोई कमी रह गयी है तो उस विवाद पर फिर से विचार करने की प्रार्थना की जा सकती है। इस अधिकार के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पहले निर्णयों को बदलकर अनेक बार निर्णय दिये हैं।