आपदा उसे प्राकृतिक या मानव-जनित भयानक घटना या संकट को कहते हैं जिसके परिणामस्वरूप मनुष्य को शारीरिक चोट व मृत्यु तथा धन-सम्पदा, जीविका व पर्यावरण की हानि का दु:खद सामना करना पड़ता है। मानवकृत आपदाएँ मनुष्य की गलतियों एवं दुष्कर्मों का प्रतिफल होती हैं। मानवकृत दो आपदाओं का वर्णन इस प्रकार है
(1) ओजोन क्षरण
पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से मनुष्य की त्वचा की ऊपरी सतह की कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। फलतः ‘हिस्टेमिन’ नामक रसायन के निकल जाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। फलस्वरूप, ‘मिलिग्रेण्ड’ नामक त्वचा कैंसर, ब्रोंकाइटिस, निमोनिया, अल्सर आदि रोग हो जाते हैं। पराबैंगनी किरणों का प्रभाव आँखों के लिए अत्यन्त घातक होता है। आँखों में सूजन तथा घाव होना तथा मोतियाबिन्द जैसी बिमारियों में वृद्धि का कारण भी इन किरणों का पृथ्वी की सतह पर आना है।
ओजोन क्षरण को रोकने के उपाय
ओजोन गैस के क्षरण को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए
1. प्रदूषण पर नियन्त्रण– प्रदूषण के कारण विभिन्न प्रकार की विषैली गैसें वायुमण्डल में फैलती हैं। जिनका ओजोन परत पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
2. CFC गैसों पर नियन्त्रण– फैक्ट्रियों, रसायन उद्योगों आदि से निकलने वाली क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, ओजोन के लिए अत्यन्त हानिकारक हैं। प्रशीतन तथा वातानुकूलित मशीनों द्वारा इन गैसों का विस्तार बढ़ता है।
3. नाइट्रस ऑक्साइड- नाइट्रस ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें जो जेट विमानों द्वारा ऊपरी वायुमण्डल में फैलती हैं, उन्हें नियन्त्रित किया जाना चाहिए।
4. वृक्षारोपण- वृक्षारोपण द्वारा प्रदूषण रोका जा सकता है।
(2) हरितगृह प्रभाव
हरितगृह से तात्पर्य एक ऐसे गृह से है जो काँच का बना होता है। यह ताप को अन्दर तो आने देता है किन्तु बाहर नहीं जाने देता है। पृथ्वी सूर्य से ऊर्जा प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त करती है किन्तु वायुमण्डल अपनी अधिकांश ऊर्जा पृथ्वी से प्राप्त करता है (पार्थिव विकिरण)। वायुमण्डले प्रवेशी लघु तरंग सौर्य विकिरण से प्रायः पारदर्शक होता है। वास्तव में वायुमण्डल काँच के घर की तरह होता है सूर्य के प्रकाश को बाहर से अन्दर आने तो देता है परन्तु उस प्रकाश को बाहर जाने नहीं देता है। इसी प्रकार वायुमण्डल सौर्य विकिरण तरंगों को भूतल तक तो आने देता है किन्तु धरातल से होने वाली दीर्घ तरंगीय बहिर्गामी पार्थिव विकरण को बाहर जाने से रोकता है। वायुमण्डल के इस प्रभाव को ही हरितगृह प्रभाव कहते हैं।
हरितगृह प्रभाव के कारण
हरितगृह प्रभाव को कार्बन डाई-ऑक्साइड गैस के साथ मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, जलवाष्प एवं आजोन, आदि गैसें भी बढ़ा रही हैं। पिछले 100 वर्षों में वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस में 25% वृद्धि हुई है। वायुमण्डल में इन हरित गृह गैसों की वृद्धि के अग्रलिखित कारण हैं—
- जीवाश्म ईंधन; जैसे-लकड़ी, कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस आदि के जलने से।
- स्वचालित वाहनों में जीवाश्म ईंधन के दहन से।
- कल-कारखानों व औद्योगिक भट्ठियों में ईंधन के जलने से।
- ज्वालामुखी के उद्गार से।
- वनस्पति के सड़ने गलने से।
- वन-विनाश से।
हरितगृह प्रभाव के दुष्प्रभाव
पिछले 100 वर्षों में भूमण्डलीय औसत तापमान में 0.3°C से 0.7°C की वृद्धि हुई है। वैज्ञानिकों के अनुसार सन् 2050 तक पृथ्वी के औसत तापमान में 1.5°C से 4.5°C बढ़ने की सम्भावना है। ऐसा होने पर वर्तमान पर्यावरणीय व्यवस्था में वर्षा के प्रारूप में परिवर्तन हो सकता है, बढ़ती गर्मी के कारण एलनिनो प्रभाव में वृद्धि हो सकती है, हिमनदों की बर्फ पिघल सकती है और ध्रुवों पर जमी बर्फ की चादरों के पिघलने से, समुद्र तल एक मीटर ऊँचा हो सकता है तथा तटीय प्रदेश पानी में डूब सकते हैं।
हरित गृह के दुष्प्रभावों के नियन्त्रण के उपाय
हरित गृह प्रभाव को नियन्त्रण में करने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं
1. वृक्षारोपण करना- वृक्षारोपण से वायुमण्डल में उपस्थित CO, की मात्रा, जो हरित गृह प्रभाव की प्रमुख गैस है, कम हो जायेगी।
2. फैक्ट्रियों पर नियन्त्रण- फैक्ट्रियों से विभिन्न प्रकार की हानिकारक गैसें निकलती हैं जो वायुमण्डल को दूषित तो करती ही हैं, साथ ही हरित गृह प्रभाव में वृद्धि करती हैं। रसायन उद्योगों से निकलने वाली CO,, SO, (कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड) अत्यन्त हानिकारक
3. नाइट्रस ऑक्साइड (NO,)- जेट विमानों से निकलने वाली विषैली गैसें हैं जो हरित गृह प्रभाव को … बढ़ावा देती हैं।
4. CFC गैसों पर रोक-क्लोरो- फ्लोरो कार्बन, मीथेन (CH,) तथा (CO) कार्बन मोनोऑक्साइड ‘, वायुमण्डल को प्रदूषित कर हरित गृह प्रभाव में वृद्धि करती हैं तथा इन पर नियन्त्रण आवश्यक है।