चक्रवात( समुद्री तूफान)- चक्रवात एक प्रकार की पवनें हैं जो उष्ण कटिबन्ध में तीव्र गति से चलती हैं। यह एक निम्न दाब का क्रम होता है जिसमें बाहर की ओर से केन्द्र की ओर हवाएँ तीव्र गति से चलती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में ये हवाएँ घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा में चलती हैं किन्तु दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की अनुकूल दिशा में ये पवनें चला करती हैं। यह चक्रवात मौसमी होते हैं। ये प्राय: ग्रीष्मकाल के उत्तरार्द्ध में सक्रिय होते हैं। इनकी उत्पत्ति तापीय भिन्नता के कारण होती है। वास्तव में यह तेज गति से लचने वाली विनाशकारी पवनें होती हैं। इनके चलने की दिशा प्राय: पश्चिम की ओर होती है तथा इनकी गति 100 किलोमीटर प्रति घण्टा से भी अधिक होती है। समुद्र में तो यह तीव्र गति से चलती हैं किन्तु तटों पर पहुँचने पर स्थल से घर्षण होने के फलस्वरूप कमजोर पड़ जाती हैं। विश्व के विभिन्न देशों में इन्हें विभिन्न नामों से जाना जाता है। भारत में इन्हें ‘चक्रवात’, ऑस्ट्रेलिया में ‘विली विलीज’, संयुक्त राज्य अमेरिका में ‘हरीकेन’ तथा चीन में ‘टाइफून’ कहा जाता है।
प्रतिचक्रवात- चक्रवातों के विपरीत प्रतिचक्रवात, उच्च वायुदाब के क्षेत्र होते हैं। इन उच्च वायुदाब केन्द्रों से वायु का प्रवाह बाहर की ओर होता है। वायु का प्रवाह उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के अनुरूप तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सूइयों के विपरीत दिशा में होता है। ध्रुवीय क्षेत्रों की उच्च वायुदाब पेटियाँ और उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब क्षेत्र इनकी उत्पत्ति के प्रमुख क्षेत्र हैं। चक्रवातों की अपेक्षा प्रतिचक्रवातों का मौसम संबंधी परिस्थितियों पर कम बुरा प्रभाव पड़ता है। प्रतिचक्रवात वायु के नीचे उतरने के क्षेत्र होते हैं। नीचे उतरती वायु धरातल पर उच्च वायुदाब बनाए रखती है तथा बाहर की ओर फैलती है। सामान्यतया प्रतिचक्रवात स्वच्छ मौसम लाते हैं परंतु यह सदैव सच नहीं होता है। कभी-कभी विशेष परिस्थितियों में प्रतिचक्रवातों में कपासी तथा कपासी वर्षा मेघों की उत्पत्ति होने से यह धारणा गलत सिद्ध होती है। प्रतिचक्रवात के केन्द्र की ओर वायुदाब प्रवणता कमजोर होती है और पवनें हल्की तथा परिवर्तनशील होती हैं।