भूकम्प से बचाव के उपाय-भूकम्प एक प्राकृतिक आपदा है जिसे रोक पाना मनुष्य के वश में नहीं है। भूकम्प से होने वाली हानि को निम्नलिखित उपायों द्वारा से कम अवश्य किया जा सकता है–
1. किसी क्षेत्र में हो रही भूगर्भीय गतियों का उस क्षेत्र में हो रहे भू-आकृतिक परिवर्तनों से अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे क्षेत्र जहाँ भूमि ऊपर-नीचे होती रहती है, अत्यधिक भूस्खलन होते हैं, नदियों के मार्ग में असामान्य परिवर्तन होता है, प्रायः भूकम्प की दृष्टि से संवेदनशील होते हैं।
2. किसी क्षेत्र में सक्रिय भ्रंशों, जिन दरारों से भू-खण्ड टूटकर विस्थापित भी हुए हों, की उपस्थिति को भूकम्प का संकेत माना जा सकता है। इस प्रकार के भ्रंशों की गतियों को समय के अनुसार तथा अन्य उपकरणों से नापा जा सकता है।
3. भूकम्प संवेदनशील क्षेत्रों में भूकम्पमापी यन्त्र (Seismograph) लगाकर विभिन्न भूगर्भीय गतियों को रिकॉर्ड किया जाता है। इस अध्ययन से बड़े भूकम्प आने की पूर्व चेतावनी मिल जाती है।
4. यद्यपि भूकम्प का पूर्वानुमान अभी भी पूर्णतया सम्भव नहीं है, तथापि बड़े भूकम्प आने से पहले कुछ असामान्य प्राकृतिक घटनाएँ तथा जैविक व्यवहार घटित होने लगते हैं। यदि इन घटनाओं और व्यवहारों के अवलोकन और पहचान में दक्षता प्राप्त कर ली जाए तो भूकम्प आने से पूर्व आवश्यक सावधानियों द्वारा सुरक्षा को बढ़ाया जा सकता है।
5. मनुष्य से अधिक संवेदनशील प्राणी; जैसे—कुत्ते, बिल्लियाँ, गाय, चमगादड़ आदि तथा कुछ अन्य जानवर अचानक उत्तेजित होकर असामान्य व्यवहार करने लगते हैं, जिसे पहचाना जा सकता है। इस असामान्य व्यवहार का कारण सम्भवतः भूकम्प आने से पूर्व पृथ्वी की कमजोर सतहों से निकलने वाली । ऊर्जा एवं विभिन्न प्रकार की गैसें हैं। इनको आधुनिक उपकरणों द्वारा रिकॉर्ड किया जा सकता है।
6. जलीय स्रोतों का पानी गन्दा अथवा मटमैला होने लगता है। रुके हुए पानी के गड्ढों की सतह में उपस्थित कीचड़ में सूक्ष्म मोड़ पड़ने लगते हैं।
7. भूकम्प आने से पूर्व पृथ्वी की रेडियोधर्मिता में हुई असामान्य वृद्धि से गैसों के निकलने के कारण वातावरण में अचानक परिवर्तन; जैसे-हेवा का शान्त हो जाना, तेज आँधी या तूफान आना आदि; अनुभव किये जाते हैं।
8. भूकम्प की आरम्भिक अवस्था में दरवाजे, खिड़कियाँ व अन्य खिसकने और घूमने वाली वस्तुओं में कम्पन होने लगता है या वे घूमने लगती हैं। मन्दिरों की घण्टियाँ भी बजने लगती हैं। अत: उपर्युक्त लक्षणों की पहचान हो जाने पर भूकम्प से बचने की तैयारी प्रारम्भ कर लेनी चाहिए, जिससे होने वाली क्षति को न्यूनतम किया जा सके।