भारतीय संसाधनों में मिट्टियों का भूमि संसाधन के रूप में बड़ा महत्त्व है, क्योंकि इन्हीं पर देश का सम्पूर्ण कृषि उत्पादन एवं जैव-जगत् निर्भर करता है। अमेरिकी भूमि विशेषज्ञ डॉ० बेनेट के अनुसार, ‘मिट्टी भू-पृष्ठ पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की वह ऊपरी परत है, जो मूल शैलों, जलवायु एवं जैव क्रिया से बनती है।” भारतीय मिट्टियों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- पुरानी एवं परिपक्व- रचना की दृष्टि से अधिकांश भारतीय मिट्टियाँ बहुत पुरानी और पूर्णत: परिपक्व हैं।
- प्राचीन जलोढ़- भारत के मैदानी भागों की अधिकांश मिट्टियाँ प्राचीन जलोढ़ हैं, जो न केवल शैलों के विखण्डन से बनी हैं, वरन् उनके निर्माण में जलवायु सम्बन्धी कारकों का भी प्रमुख हाथ रहा है।
- मिट्टियों में नाइट्रोजन, जीवांश, वनस्पति अंश और खनिज लवणों की कमी- भारत की प्रायः सभी मिट्टियों में इन उपयोगी तत्त्वों की कमी पायी जाती है।
- ऊँचे तापमान- उपोष्ण कटिबन्धीय भारत में मिट्टियों के तापमान प्राय: ऊँचे पाये जाते हैं। इससे शैलों के टूटते ही उनका रासायनिक विघटन शीघ्र आरम्भ हो जाता है।
- हल्का आवरण- पहाड़ी एवं पठारी भागों में मिट्टी का आवरण हल्का और फैला हुआ होता है, जबकि मैदानी और डेल्टाई क्षेत्रों में यह गहरों और संगठित होता है।