किसी भी विषय के व्यवस्थित अध्ययन के लिए उस विषय की प्रकृति को निर्धारित करना आवश्यक होता है। विषय की प्रकृति को निर्धारित करने के लिए सर्वप्रथम यह निश्चित करना आवश्यक होता है कि अमुक विषय विज्ञान’ है अथवा ‘कला’। गृह विज्ञान की प्रकृति का विश्लेषण करने से ज्ञात होता है कि इसमें ‘विज्ञान’ तथा ‘कला’ दोनों के ही लक्षण विद्यमान हैं। इस तथ्य की पुष्टि अग्रवर्णित विवरण द्वारा हो जाएगी
(अ) गृह विज्ञान : एक विज्ञान के रूप में
विज्ञान शब्द का अर्थ एक विशिष्ट क्रमबद्ध ज्ञान से है। यह कार्य तथा कारण में सम्बन्ध स्थापित करता है। नियमों का निर्माण, सुनिश्चित अध्ययन प्रणाली एवं भावी घटनाओं का अनुमान इत्यादि विज्ञान की प्रमुख विशेषताएँ हैं। ये लगभग सभी गृह विज्ञान की भी विशेषताएँ हैं, जिन्हें निम्नलिखित विवरण द्वारा स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है
(1) यह तथ्यात्मक है:
गृह विज्ञान के अन्तर्गत हम शरीर विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, गृह परि चर्या, वस्त्र विज्ञान तथा अर्थव्यवस्था आदि से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्रित कर उनका तथ्यात्मक अध्ययन करते हैं।
(2) वैज्ञानिक पद्धति द्वारा अध्ययन:
गृह विज्ञान में आहार एवं पोषण विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, प्राथमिक चिकित्सा एवं औषधि विज्ञान के वैज्ञानिक नियमों की जानकारी प्राप्त करके स्वास्थ्य, चिकित्सा एवं सुरक्षा आदि से सम्बन्धित नियम बनाये जाते हैं अर्थात् गृह विज्ञान के अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धति को अपनाया जाता है।
(3) गृह विज्ञान में सर्वमान्य सिद्धान्त हैं:
इसमें गृह-सज्जा, स्वास्थ्य, आहार और पोषण, चिकित्सा, बाल विकास, वस्त्रों की देख-रेख आदि के सर्वमान्य सिद्धान्त हैं। ये परिस्थितियों के अनुसार केवल कुछ संशोधनों के साथ विश्व के सभी भागों में स्वीकार किए जाते हैं।
(4) गृह विज्ञान में भविष्यवाणी सम्भव है:
गृह विज्ञान से सम्बन्धित अनेक विषयों पर तो निश्चित भविष्यवाणी की जा सकती है तथा अनेक विषयों पर सम्भावनाएँ व्यक्त की जा सकती हैं।
(5) गृह विज्ञान के तथ्य प्रामाणिक होते हैं:
गृह विज्ञान के सिद्धान्त एवं तथ्य सभी परिस्थितियों में प्रामाणिक होते हैं। । उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि ‘गृह विज्ञान’ में विज्ञान की विभिन्न विशेषताएँ विद्यमान हैं।
(ब) गृह विज्ञान : एक कला के रूप में
कला का अर्थ व्यावहारिक जीवन में ज्ञान के प्रयोग से हैं। यह एक मानवीय प्रयत्न है जिसके द्वारा वस्तुओं को पहले से श्रेष्ठ व सुन्दर बनाने का प्रयास किया जाता है। कल्पना एवं सृजनात्मकता कला की मुख्य विशेषताएँ हैं। गृह विज्ञान में भी कला के कुछ तत्त्व विद्यमान हैं। गृह विज्ञान का ज्ञान गृहिणी में मानवीय गुणों का विकास करता है जिसमें गृह, परिवार व समाज का सर्वांगीण उत्थान निहित है। निम्नलिखित विवरण इस तथ्य की पुष्टि करते हैं—
(1) सौन्दर्य बोध:
कला सौन्दर्य बोध की प्रतीक है। गृह विज्ञान में घर की सज्जा की शिक्षा दी जाती है। इसमें पाक-कला एवं आहार-नियोजन के व्यावहारिक वे कलात्मक दोनों पक्षों का अध्ययन किया जाता है।
(2) परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं का अध्ययन:
परिवार के आर्थिक पक्ष अर्थात् आय-व्यय और बचत के विषय में जानकारी तथा नियोजन, नियन्त्रण एवं मूल्यांकन द्वारा जीवन को सुखमय एवं सुविधाओं से परिपूर्ण बनाने की शिक्षा मिलती है।
(3) व्यक्तिगत सज्जा, वस्त्र-निर्माण एवं देख-रेख आदि:
ये सब जीवन के कलात्मक पक्ष को दिशा प्रदान करते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि गृह विज्ञान में यदि एक ओर विज्ञान के अनेक विषयों का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया जाता है, तो दूसरी ओर गृह-व्यवस्था एवं गृह-सज्जा, अर्थव्यवस्था, व्यक्तिगत सज्जा आदि के कलात्मक सिद्धान्तों को भी व्यावहारिक रूप दिया जाता है। अतः यह कथन कि ”गृह विज्ञान कला और विज्ञान दोनों ही है” पूर्णरूप से तर्कसंगत है।