दूध को एक ऐसा आहार माना जाता है जो प्रायः सभी पोषक तत्वों से परिपूर्ण है। इसमें अन्य सभी खाद्य पदार्थों की अपेक्षा अधिक पोषक तत्त्व उपस्थित रहते हैं। बच्चे के जन्म के समय से ही जीव का प्रमुखं आहार दूध होता है। वह अपने शरीर की वृद्धि के लिए माता के दूध पर पूर्णरूप से निर्भर रहता है। जब वह बड़ा हो जाता है तो उसे गाय, भैंस, बकरी इत्यादि का दूध पिलाया जाता है। आहार सम्बन्धी सभी आवश्यक तत्त्व; जैसे—प्रोटीन, खनिज-लवण इत्यादि दूध में उपस्थित रहते हैं। दूध में प्रोटीन केसीन तथा लैक्टा एल्ब्यूमिन के रूप में पाई जाती है, जिसे प्राप्त करके एक स्वस्थ मनुष्य अपने शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
प्राप्ति स्रोत:
दूध एक महत्त्वपूर्ण पशु प्रदत्त भोज्य पदार्थ है। दूध हमें सामान्यतः गाय, भैंस व बकरी से प्राप्त होता है। हमारे देश में गाय का दूध अधिक सुपाच्य एवं उत्तम माना जाता है।
दूध से बनने वाले पदार्थ:
दूध को उसके प्राकृतिक रूप में प्रयोग क़िए जाने के अतिरिक्त उससे अनेक पदार्थ बनाए जाते हैं। इनका अपना अलग-अलग उपयोग एवं महत्त्व है। दूध से बनने वाले विभिन्न पदार्थ निम्नलिखित हैं
(1) स्किम्ड अथवा सप्रेटा दूध:
यन्त्र द्वारा दूध से क्रीम (वसा) अलग कर देने के पश्चात् स्किम्ड दूध शेष बचता है।
(2) कन्डेन्स्ड दूध:
यन्त्रों की सहायता से दूध का लगभग 2/3 जलांश दूर करके कन्डेन्स्ड दूध बनाया जाता है।
(3) शुष्क दूध:
यान्त्रिक विधि से दूध को पूर्णत: जलरहित कर उसका शुष्क पाउडर बना लिया जाता है।
(4) दही:
दूध से निर्मित एक मुख्य खाद्य पदार्थ ‘दही है। यदि दूध में लैक्टिक अम्ल का समावेश हो जाए, तो उसमें विद्यमान प्रोटीन जम जाती है तथा दूध दही के रूप में परिवर्तित हो जाता है। हाँडी में दही जमाने के लिए सामान्य तापक्रम वाले दूध में जामन लगाई जाती है। इस जामन में लैक्टिक अम्ल तथा लैक्टोबेसीलाई बैक्टीरिया होते हैं जिनके प्रभाव से दूध में विद्यमान लैक्टोस लैक्टिक एसिड के रूप में बदल जाता है तथा दूध की कैनीन नामक प्रोटीन जम जाती है। दही दूध की अपेक्षा सुपाच्य होता है।
(5) मलाई एवं क्रीम:
उबले हुए दूध को ठण्डा करने पर इसकी सतह पर चिकनाईयुक्त मलाई जम जाती है। यान्त्रिक विधि द्वारा दूध को मथकर उससे क्रीम निकाली जाती है।
(6) मक्खन:
दही को मथने पर इसका हल्का भाग मक्खन के रूप में ऊपर तैरने लगता है। इसे ठण्डा करने पर यह जमकर ठोस मक्खन बन जाता है। मक्खन में वसा की मात्रा अत्यधिक होती है। सामान्य रूप से मक्खन में 85% भाग वसा ही होती है।
(7) छाछ अथवा मट्ठा:
मक्खन अलग हो जाने पर शेष दही छाछ अथवा मट्ठा कहलाती है।
(8) घी:
मक्खन को गर्म करके जलांश का वाष्पीकरण करने पर घी शेष बचता है। यह पूर्णरूप से वसा है। घी को बहुत समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है, क्योंकि इसमें जल की बिल्कुल भी मात्रा नहीं होती।
(9) पनीर:
दूध को दही, नींबू अथवा टाटरी से फाड़कर बारीक कपड़े में छानने पर इसका जलांश छन जाता है तथा पनीर शेष बचता है। वास्तव में दूध के फटने के साथ-साथ दूध में विद्यमान प्रोटीन थक्कों के रूप में जम जाती है तथा शेष भाग पानी के रूप में अलग हो जाता है। पनीर में मुख्य रूप से केसीन नामक प्रोटीन होता है।
(10) खोया अथवा मावा:
दूध को धीमी आँच पर वाष्पीकृत किया जाता है। अन्त में सम्पूर्ण जलांश दूर होने पर खोया शेष बचता है। खोया या मावा से विभिन्न मिठाइयाँ तथा अन्य व्यंजन बनाए जाते हैं। मावा एक गरिष्ठ खाद्य पदार्थ है। इसका पाचन मुश्किल से होता है।
दूध के पौष्टिक तत्त्व एवं उनका महत्त्व
- दूध में लगभग 3.5% प्रोटीन होती है, जिसे केसीनोजन कहते हैं। दूध में (विशेषत: माता के दूध में) एक और महत्त्वपूर्ण प्रोटीन (लेक्टो-एल्ब्यूमिन) पाई जाती है। अत: प्रोटीनयुक्त दूध शरीर को शक्ति प्रदान करता है।
- दूध में 3.5-4% वसा घुलनशील रूप में उपस्थित होती है। यह अधिक सुपाच्य होती है तथा शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है।
- दूध में कैल्सियम, पोटैशियम तथा फॉस्फोरस आदि तत्त्व पाए जाते हैं। आंशिक रूप से दूध में मैग्नीशियम, सोडियम तथा आयोडीन भी पाए जाते हैं। इनसे अस्थियाँ एवं स्नायु सुदृढ़ होते हैं तथा रक्त का संगठन ठीक बना रहता है।
- दूध में आंशिक रूप से लगभग सभी विटामिन पाए जाते हैं। दूध में विटामिन ‘ए’ एवं ‘डी’ अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इनके कारण दूध नेत्रों के लिए अति उपयोगी रहता है। दूध पीने वाले बच्चों को सूखा रोग एवं पुरुषों तथा महिलाओं को रतौंधी का भय नहीं रहता।
- दूध में 4-6% तक कार्बोज होता है। यह लैक्टोस अथवा दुग्ध-शर्करा के रूप में पाया जाता है। यह शरीर को स्वाभाविक ऊर्जा प्रदान करता है।
- उपयुक्त मात्रा में जल होने के कारण दूध सुपाच्य होता है।
- विभिन्न स्रोतों से प्राप्त दूध में पौष्टिक तत्वों की प्रतिशत मात्रा निम्न प्रकार से होती है

उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि दूध में लगभग सभी पौष्टिक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं, जिसके फलस्वरूप दूध शरीर की लगभग सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है। अतः स्पष्ट है। कि दूध प्रत्येक दृष्टिकोण से एक सम्पूर्ण आहार है। दूध सभी वर्गों के व्यक्तियों के लिए उपयोगी आहार है। शैशवावस्था में तो दूध ही एकमात्र आहार होता है। नवजात शिशु के लिए माता का दूध ही एकमात्र आहार है। बाल्यावस्था में शरीर की वृद्धि एवं विकास के लिए दूध का विशेष महत्त्व स्वीकार किया गया है। किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था तथा वृद्धावस्था में भी दूध का विशेष महत्त्व होता है। दूध एक सम्पूर्ण आहार है, यह सुपाच्य है तथा साथ-ही-साथ स्वादिष्ट भी होता है। दूध का उपयोग अनेक प्रकार से किया जा सकता है।