कबीर मनुष्य को गर्व न करने का उपदेश इसलिए देते हैं क्योंकि मनुष्य धने, बल, महल आदि जिन वस्तुओं पर गर्व करता है वे सब नश्वर हैं। मनुष्य का शरीर स्वयं नश्वर है। उसके महल बने-बनाये रह जाते हैं, वह स्वयं भूमि पर लेटता है और ऊपर घास जमती है। फिर गर्व किस बात का?