हे प्रभुजी ! आप चन्दन हैं और मैं पानी, जिसकी सुगन्ध मेरे अंग-अंग में समा गयी है। हे प्रभुजी ! आप इस उपवन के वैभव हैं और मैं मोर। मेरी दृष्टि आपके ऊपर लगी हुई है जैसे-चकोर चन्द्रमा की तरफ देखता रहता है। हे ईश्वर ! आप दीपक हैं और मैं उस दीप की बाती हूँ जिसकी ज्योति निरन्तर जलती रहती है। हे ईश्वर ! आप मोती हैं और मैं उस मोती में पिरोया जाने वाला धागा हूँ। यह स्थिति उसी प्रकार है जैसे सोने और सुहागा के मिलने पर होता है। हे प्रभुजी ! आप स्वामी हैं और मैं आपका दास हूँ। रैदास के मन में ईश्वर के प्रति इसी तरह का भक्तिभाव है।