‘सितार-संगीत की रात’ समकालीन कवि केदारनाथ अग्रवाल की चर्चित रचना है। कवि कहता है कि सितार की ध्वनि जब निकलती है तो हर्ष एवं उल्लास का माहौल छा जाता है। शहद से परिपूर्ण पंखुड़ियाँ खुलती चली जाती हैं। अँगुलियाँ जब सितार पर थिरकती हैं तो ऐसा मालूम पड़ता है जैसे वे नृत्य कर रही हैं। हर्ष रूपी हंस दूध पर तैरने लगता है जिस पर सवार होकर सरस्वती काव्यलोक में भ्रमण करती हैं।