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भारतीय वस्त्रों एवं महात्मा गाँधी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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पोरबन्दर गुजरात में जन्में महात्मा गांधी बचपन में परंपरागत वस्त्र पहनते थे। लेकिन 19 वर्ष की आयु में जब वे कानून की पढ़ाई करने लंदन गए तो वे पश्चिमी पोशाकों की ओर आकृष्ट हुए। 1890 ई० के दशक में दक्षिण अफ्रीका में वकालत करने तक वे कोट-पैंट व पगड़ी पहनते थे। 1913 ई० में दक्षिण अफ्रीकी सरकार के विरोध में जब उन्होंने वहाँ भारतीय कोयला खदान मजदूरों का समर्थन किया तो उन्हें पश्चिमी वस्त्र व्यर्थ प्रतीत हुए और उन्होंने लुंगी-कुर्ता पहनने का प्रयोग आरंभ किया। साथ ही विरोध करने के लिए खड़े हो गए।

1915 ई. में भारत वापसी पर उन्होंने काठियावाड़ी किसान का रूप धारण कर लिया। अंततः 1921 में उन्होंने अपने शरीर पर केवल एक छोटी-सी धोती को अपना लिया। गाँधीजी इन पहनावों को जीवन भर नहीं अपनाना चाहते थे। वह तो केवल एक या दो महीने के लिए ही किसी भी पहनावे को प्रयोग के रूप में अपनाते थे। परंतु शीघ्र ही उन्होंने अपने इस पहनावे को गरीबों के पहनावे का रूप दे दिया। इसके बाद उन्होंने अन्य वेशभूषाओं का त्याग कर दिया और जीवन भर एक छोटी सी धोती पहने रखी।

इस वस्त्र के माध्यम से वह भारत के साधारण व्यक्ति की छवि पूरे विश्व में दिखाने में सफल रहे। महात्मा गाँधी ने विदेशी वस्त्रों के स्थान पर खादी पहनने के लिए बल दिया। उन्होंने देशवासियों को प्रेरित किया कि वे चरखा चलाएँ और स्वयं के बनाए हुए वस्त्र पहनें। उनके लिए खादी शुद्धता, सादगी और राष्ट्रभक्ति का पर्याय थी। उनके प्रयासों से शीघ्र ही पूरे देश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने खादी को अपना लिया और खादी वस्त्र राष्ट्रभक्ति का प्रतीक बन गए।

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