वर्ष 1966-67 में हरित क्रान्ति के माध्यम से कृषि उत्पादन के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य उन्नत किस्म के बीज, खाद, सिंचाई तथा आधुनिक यंत्रों के उपयोग द्वारा कृषि उपज में तीव्र गति से वृद्धि करना था। इसे ही हरित क्रान्ति कहते हैं। भारत में डॉ०एम०एस० स्वामीनाथन को हरित क्रान्ति का जनक कहा जाता है।
हरित क्रांति का प्रभाव- हरित क्रांति के प्रभाव स्वरूप अधिक उपज के लिए सुधरे हुए उन्नत बीजों का प्रयोग होने लगा।
⦁ रासायनिक खादों जैसे- अमोनियम सल्फेट, यूरिया, सुपर फॉस्फेट, पोटैशियम सल्फेट, डाई-अमोनियम फॉस्फेट तथा पोटैशियम नाइट्रेट का विकास व उपयोग किया गया।
⦁ जैविक खाद का उत्पादन बढ़ाना जैसे कंपोस्ट की खाद, हरी खाद (जिसमें सनई, हैचा को सड़ाया जाता है) नीम की खली की खाद इत्यादि।
⦁ रासायनिक कीट नाशक दवाओं को प्रयोग करना।
⦁ कृषि यंत्र जैसे ट्रैक्टर, थ्रेशर आदि का प्रयोग करना।
⦁ फसलों की सिंचाई के लिए नलकूप, नहरों तथा तालाब आदि बनाने का कार्य किया गया।