कवयित्री अतीत से मौन त्यागने को इसलिए कह रही है क्योंकि अतीत में जितने भी युद्ध हुए हैं उनके परिणाम में किसी-न-किसी का विनाश अवश्य हुआ है। खासकर अधर्म और अन्याय की राह पर चलने वालों का अंत ही हुआ है। अतीत इस बात का साक्षी रहा है। सीता का अपहरण करने वाले रावण की लंका का जलना हो या पांडवों द्वारा कौरवों का सर्वनाश। यहाँ कवयित्री द्वारा अतीत से मौन त्यागने की बात करने का तात्पर्य यह है कि वे वर्तमान पीढ़ी को अतीत से सीख लेने को प्रेरित कर रही हैं और लोगों को युद्ध की विभीषिका से बचाना चाहती हैं।