गुजराती में कहायत है – ‘दुनियानो छेड़ो घर’ अर्थात् पूरी दुनिया का अंतिम छोर (आश्वस्ति स्थल) घर है । पूरी दुनिया घूम आओ भगर सुख-चैन तो घर पर ही मिलता है । घर से दूर रहकर घर-परिवार याद आना किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए सहज बात है। घर से दूर होकर मैं सुबह की क्रियाकलापों के साथ ही सबसे पहले आँगन के पेड़ पर चहचहानेवाले पक्षी। को याद करता हूँ।
उन्हीं की मधुर गुंजन से में जगती हूँ । फिर माँ का हम सबको जगाना, नहा-धोकर तैयार होने के साथ ही माँ के द्वारा बनाया हुआ गरम, स्वादिष्ट और पोष्टिक नाश्ते की याद आए बिना नहीं रहती । घर से बाहर निकलते ही माँ की नसीहतें याद आने लगती हैं, सड़क ध्यान से क्रोस करना, जल्दबाजी मत करना, नाश्ता समय पर कर लेना आदि।
घर में किसी की तबियत ठीक न होने पर परिवार में सभी सदस्यों की चिंता, आपसी स्नेह, सहकार को कैसे भुलाया जा सकता है । खासकर दादा-दादी के देशी उपचार और माता-पिता की आकुलता-व्याकुलता, भाई-बहनों का आपसी प्यार याद आए बिना नहीं रहता । पास-पड़ोस के लोगों की सद्भावनाएँ और सद्व्यवहार भी याद आता है।
शाम-सुबेरे दूधवाले की एक खास प्रकार की पुकार सब्जीवाले की आवाज। गली में बच्चों की अठखेलियाँ। सब रह-रहकर याद आने लगता है । अपने हाथों आँगन। में उगाया हुआ पौधा भी अपनी ओर ध्यान खींचता है, जिज्ञासा बढ़ाता है कि वह कितना विकसित हो गया होगा।