चंपा को इस बात पर इसलिए विश्वास नहीं होता कि गाँधी बाबा ने पढ़ने-लिखने की बात की होगी। क्योंकि एक तो वह अनपढ़ है, सरल है और ग्राम्य बाला है। उसे महात्मा गाँधी के महान व्यक्तित्व से क्या लेना-देना ! हाँ, इतना जरूर है कि गाँधी जी के व्यक्तित्व से पूरा देश प्रभावित था। वह समय ही कुछ ऐसा था, क्या गाँव और क्या शहर में, किसी न किसी बात को लेकर गाँधी जी का जिक्र जरूर होता था।
इसलिए चम्पा के मन में यह धारणा स्पष्ट थी कि गाँधी जी एक बहुत बड़े और अच्छे व्यक्ति हैं। ऐसा अच्छा व्यक्ति पढ़ने-लिखने की बात कैसे कर सकता है। क्योंकि चम्पा क्या जाने पढ़ाई लिखाई का महत्त्व। उसके लिए तो मुक्त मन से बातें करना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। यहाँ परोक्ष रूप से कवि ने भारतीय ग्राम्य जीवन के कटु यथार्थ से भी हम स्वरू करवाया है। क्योंकि आज भी गरीबी अज्ञानता के घोर अंधकार में डूबे लोगों के बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैं। उनके हाथ में कलम की जगह कुदाल है, फावड़ा है।