‘मुर्दा शांति से भर जाना और हमारे सपनों का मर जाना’ – दोनों ही सबसे खतरनाक स्थितियाँ हैं। ‘मुर्दा शांति से भर जाना’ अर्थात् कैसी भी स्थिति में न बोल पाने और न सोच पाने की स्थिति। अन्याय, अत्याचार का विरोध न कर पाने की स्थिति, मुक्ति पाने की बेचैनी या छटपटाहट से शून्य हो जाना, मौन धारण करके सबकुछ सहन करने को विवश हो जाना – यानि जिन्दा लाशयत हो जाना।
सामाजिक अन्याय खिलाफ प्रतिरोध की शक्ति का मर जाना सबसे खतरनाक है। ‘सपनों का मर जाना’ – अर्थात् अपनी छोटी-छोटी उम्मीदों का मर जाना। ये उम्मीदें जिन्हें पूरी करने के लिए यह प्रयास करता है, पाता है, खुश होता है, विकसित होता, समाज में अपना स्थान-वजूद बनाता है और जीवन गुजार देता है। ऐसी उम्मीदों का मर जाना अर्थात् बदलाव की भूमिका तैयार न करके यथास्थिति को स्वीकार कर लेना।