विकासशील अर्थतंत्र के लक्षण निम्न प्रकार है :
नीची प्रति व्यक्ति आय : विकासशील देशों की राष्ट्रीय आय नीची होती है, जबकि जनसंख्या वृद्धि दर अधिक होने से प्रतिव्यक्ति आय नीची रहती है । प्रति व्यक्ति आय कम होने जीवन स्तर नीचा रहता है ।
जनसंख्या वृद्धि : विकासशील राष्ट्रों में जनसंख्या वृद्धि अधिक पायी जाती है । ऐसे देशों में जनसंख्या वृद्धि दर 2% से भी : अधिक होती है।
कृषिक्षेत्र पर निर्भरता : विकासशील राष्ट्रों में कृषि मुख्य आर्थिक प्रवृत्ति होती है और देश के 60% से अधिक लोग रोजगारी के लिए कृषि पर आधारित होती है । देश की राष्ट्रीय आय में भी कृषि का योगदान 25% होता है ।
आय का असमान वितरण : विकासशील राष्ट्रों में आय तथा उत्पादन साधनों का बँटवारा असमान होता है । यह असमानता ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में होता है । विकासशील राष्ट्रों में आय और संपत्ति का केन्द्रीकरण धनिक लोगों में होता है ।
बेरोजगारी : बेरोजगारी विकासशील देशों का महत्त्वपूर्ण लक्षण है । इन देशों में बेरोजगारी की मात्रा कूल श्रमिकों का 3% से अधिक होता है । मौसमी बेरोजगारी, छुपी बेरोजगारी, औद्योगिक बेरोजगारी आदि पायी जाती है, जो लम्बे समय की बेरोजगारी होती है ।
गरीबी : गरीबी विकासशील राष्ट्र का लक्षण है, जो लोग अपनी प्राथमिक आवश्यकताएँ जैसे अनाज, कपड़ा, आवास, शिक्षण और स्वास्थ्य आदि संतुष्ट नहीं कर सकते उन्हें गरीब माना जाता है । विकासशील देशों में ऐसे लोगों का अनुपात लगभग कुल
तीसरा भाग है ।
द्विमुखी अर्थतंत्र : विकासशील देशों में अर्थतंत्र द्विमुखी होता है । एकतरफ ग्रामीण क्षेत्रों में पिछड़ी कृषि पद्धति, पुरानी यंत्र सामग्री, रूढ़िचुस्त सामाजिक ढाँचा, कम उत्पादन पाया जाता है । दूसरी तरफ शहरी क्षेत्र में आधुनिक उद्योग, नयी उत्पादन पद्धति, आधुनिक यंत्र तथा विलासी जीवन पद्धति पायी जाती है ।
मूलभूत ढाँचागत सुविधाओं अपर्याप्त : विकास के लिए अनिवार्य मूलभूत सुविधाएँ जैसे शिक्षा, परिवहन, संचार, बीजली, स्वास्थ्य, बैंकिंग आदि का कम विकास पाया जाता है ।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का स्वरूप : विकासशील देशों में विदेशी व्यापार का स्वरूप और ढाँचा अलग पाया जाता है । ऐसे देशों में मुख्यत: कृषि उत्पादों और बागायती पेदाईशों तथा कच्ची धातुओं का निर्यात करते है । इन निर्यातों की माँग कम होने से मूल्य कम होता है । आयातों में औद्योगिक उत्पादों, यंत्र सामग्री की मात्रा अधिक होती हैं, ऐसी वस्तुओं के मूल्य अधिक होने से आयात खर्च अधिक होता है । इस प्रकार विकासशील राष्ट्रों के लिए विदेशी व्यापार की शर्ते प्रतिकूल रहने से देश पर विदेशी कर्ज बढ़ता है ।