आषाढ़ माह वर्षा के आरंभ का महीना है। आषाढ़ लगते ही रिमझिम-रिमझिम वर्षा शुरू होने लगती है, उस समय सारा गाँव खेतों में उतर पड़ता है। कहीं हल चलता है, कहीं धान की रोपनी होती है। धान के पानी भरे खेतों में बच्चे उछल-उछल कर खेलते हैं। औरतें क्लेवा लेकर मेंड पर बैठी है। आसमान बादलों से घिरा है, धूप का कहीं नामो-निशान नहीं है।
ठंडी पूरवाई चल रही है। बालगोबिन कीचड़ी से लथपथ धान की रोपाई करते समय गीत गाते । उनके गीत ने वातावरण को चमत्कृत कर दिया है। बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं, मेड़ पर खड़ी औरतों के होठ काँप उठते है, वे गुनगुनाने लगती हैं। हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं, रोपनी करनेवालों की अंगुलियां एक अजीब क्रम में चलने लगती हैं। यह सब बालगोबिन के संगीत का जादू है।