काव्य-सौंदर्य : गोपी सखी के कहने पर श्रीकृष्ण जैसा सारा शृंगार करने को तो तैयार हो जाती है । किन्तु कृष्ण की मुरली को अपने होठों पर रखने को तैयार नहीं होती है । वह मुरली को अपनी सौत मानती है । वह मुरली हमेशा कृष्ण के होठों से लगी रहती है जिसके कारण उन्हें कृष्ण का सांनिध्य नहीं प्राप्त होता है । यहाँ मुरली के प्रति गोपी के मन में ईष्याभाव है। यह काव्यांश सवैया छंद में लिखा गया है । छंद ब्रजभाषा में है । अनुप्रास के अलावा, अधरान और अधराँन में रूपक अलंकार हे ।