राष्ट्रीय आय की गणना एक बार गिनने के बाद दूसरी बार गिना जाय तो उसे दोहरी गणना कहते हैं । दोहरी गणना से राष्ट्रीय आय का वास्तविक ख्याल नहीं आता है, जो राष्ट्रीय आय ऊँची दिखायी देती है । वास्तव में ऐसा नहीं होता है । इसलिए राष्ट्रीय आय की गणना करते समय दोहरी गणना से बचना चाहिए ।
दोहरी गणना से बचने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :
(1) मात्र अंतिम वस्तु का मूल्य गणना में लेना चाहिए : इस पद्धति में अर्धतैयार मध्यांतराल में उपयोगिता रखनेवाली वस्तुओं का मूल्य गिनने के बदले, मात्र अंतिम वस्तु का मूल्य ही गणना चाहिए । जैसे लोहे से बना यंत्र ।
इसमें मात्र यंत्र के मूल्य की ही गणना चाहिए और उसमें लोहे का मूल्य समाया हुआ है । यदि लोहे का मूल्य गिना जायेगा तो दोहरी गणना की जायेगी । इससे मात्र ये गणना करके दोहरी गणना का प्रश्न हल हो जायेगा ।
(2) मूल्यवृद्धि की पद्धति : दोहरी गणना को दूर करने के लिए दूसरा उपाय है मूल्यवृद्धि की पद्धति । उत्पादन प्रक्रिया में जब वस्तु एक सोपान में से दूसरे सोपान में जाती हैं तब उसका मुद्राकीय मूल्य बढ़ता है । इस बढ़े हुए मूल्य को अलग से करके उसका योग करके राष्ट्रीय उत्पाद की गणना की जाये तो दोहरी गणना नहीं होती । उसे एक उदाहरण से समझें :
उत्पादन के सोपान (रु. में) |
विक्रय आय (रु. में) |
साधन खर्च (रु. में) |
मूल्यवृद्धि (रु. में) |
रुई (कपास) |
100 |
0 |
100 |
सूत |
200 |
100 |
100 |
कपड़ा |
280 |
200 |
280 |
कुल |
580 |
300 |
480 |
एक कारखाने में रु. 100 का कपास लाया जाये उसमें से 200 रुपये का सूत बनता है और 200 रुपये के सूत में से 280 रुपये का कपड़ा बनता है तो राष्ट्रीय उत्पाद में 100 + 200 + 280 = 580 का मुद्राकीय मूल्य गिना जाये तो दोहरी गणना होती है । कपास सूत और कपड़ा दोनों में समाविष्ट है । इसलिए कपास की गणना तीन बार होती है । यह दोहरी गणना है परंतु यदि 100 रुपये का कपास + 100 रुपये का सूत + 80 रुपया कपड़े का बढ़ा हुआ मूल्य गिना जाये अर्थात् 280 रुपये का मूल्य वृद्धि की गणना करना यह दोहरी गणना नहीं होती है । उपर के उदाहरण में कपड़े के उत्पादन में उपयोगी साधन-सामग्री का खर्च शून्य बताया है । कारण कि यहाँ मान लिया गया है कि कपास का उत्पादन बीते हुए वर्ष का है, जो भूतकाल के वर्ष की राष्ट्रीय आय में गिन लिया गया है ।