देशीनामा में लाभ-हानि ज्ञात करने की दो पद्धतियाँ हैं :
(1) खरीद-वकरा खाता की पद्धति
(2) बट्टा खाता की पद्धति
(1) खरीद-वकरा खाता की पद्धति : छोटे व्यापारी वर्ष के अंत में धंधे से होनेवाले लाभ या हानि को ज्ञात करने के लिए खरीद वकरा खाता की पद्धति का उपयोग करते हैं । इस पद्धति के अनुसार वर्ष का प्रारंभिक स्टॉक तथा वर्ष दरम्यान की खरीदी को खरीद-वकरा खाते के उधार तरफ दर्शाया जाता है तथा वर्ष दरम्यान माल की बिक्री तथा अंतिम स्टॉक को जमा तरफ दर्शाया जाता है । वर्ष दरम्यान के खरीदी से संबंधित खर्च, घिसाई, डूबत आदि खर्चों की हवाला असर कर उनके खाते बंद कर खरीद-वकरा खाते उनकी खतौनी की जाती है । उसी प्रकार वर्ष दरम्यान प्राप्त आवकों के खातों को भी बंद करके उसे खरीद-वकरा खाते में दर्शाया जाता है ।
इस प्रकार तैयार किये गए खरीद-वकरा खाते का योग कर बाकी या शेष ज्ञात किया जाता है । यदि खरीद-वकरा खाते का उधार तरफ का योग अधिक हो तो शुद्ध हानि तथा यदि जमा तरफ का योग अधिक हो तो शुद्ध लाभ गिना जाता है । इस प्रकार प्राप्त किया गया शुद्ध लाभ या हानि को भंडोल खाते ले जाया जाता है ।
(2) बट्टा खाता की पद्धति : जिस धंधे में व्यवहारों की संख्या अधिक हो ऐसे बड़े व्यापारी बट्टा खाता द्वारा वर्ष के अंत में लाभ या हानि ज्ञात करते हैं । इस प्रकार की पद्धति से सकल लाभ या हानि ज्ञात करने के लिए खरीद-वकरा खाता तैयार किया जाता है जबकि शुद्ध लाभ या हानि ज्ञात करने के लिए बट्टा खाता तैयार किया जाता है ।
इस पद्धति में बनाये जानेवाले दोनों खातों की विस्तृत जानकारी निम्न हैं :
- खरीद-वकरा खाता : इस खाते में प्रारंभिक स्टॉक, खरीदी, खरीदी से सम्बन्धित खर्च, बिक्री तथा अंतिम स्टॉक का लेखा किया जाता है । इस खाते पर से वर्ष के अंत में धंधे से प्राप्त सकल लाभ या सकल हानि ज्ञात किया जाता है जिसे बट्टा खाते में ले जाया जाता है ।
- बट्टा खाता : बट्टा खाते में वर्ष दरम्यान व्यवसाय के सभी वर्गों तथा उपजों का लेखा किया जाता है । धंधे में होनेवाले सभी खर्चों को बट्टा खाते के उधार तरफ तथा सभी आवकों को जमा तरफ दर्शाया जाता है । बट्टा खाते पर से वर्ष के अंत में व्यवसाय को होनेवाली शुद्ध हानि या शुद्ध लाभ ज्ञात किया जाता है ।