रणजीत सिंह की मृत्यु के पश्चात् अंग्रेजों ने अपनी सैनिक तैयारियों की गति तीव्र कर दी। इस बात पर सिक्खों का भड़कना स्वाभाविक था। 1845 ई० में फिरोज़पुर के निकट सिक्खों और अंग्रेजों में लड़ाई आरम्भ हो गई। सिक्खों के मुख्य सेनापति तेज सिंह और वज़ीर लाल सिंह के विश्वासघात के कारण मुदकी तथा फिरोज़शाह नामक स्थान पर सिक्खों की हार हुई। 1846 ई० में सिक्खों ने लुधियाना के निकट अंग्रेजों को बुरी तरह पराजित किया। परन्तु गुलाब सिंह के विश्वासघात के कारण अलीवाल और सभराओं नामक स्थान पर सिक्खों को एक बार फिर हार का मुंह देखना पड़ा। मार्च, 1846 ई० में गुलाब सिंह के प्रयत्नों से सिक्खों और अंग्रेजों के बीच एक सन्धि हो गई। सन्धि के अनुसार सिक्खों को अपना बहुत-सा प्रदेश और डेढ़ करोड़ रुपये अंग्रेजों को देने पड़े। दिलीप सिंह के युवा होने तक पंजाब में शान्ति व्यवस्था बनाये रखने के लिए एक अंग्रेजी सेना रख दी गई।