पृष्ठभूमि- अंग्रेजी सरकार के आर्थिक कानूनों से पंजाबियों की आर्थिक दशा बहुत शोचनीय हो गई थी। अत: 1905 ई० में कुछ लोग रोजी-रोटी की खोज में विदेशों में जाने लगे। इनमें से कई पंजाबी लोग कैनेडा जा रहे थे। परन्तु कैनेडा सरकार ने 1910 ई० में एक कानून पास किया। इसके अनुसार केवल वही भारतीय कैनेडा में प्रवेश कर सकते थे, जो अपने देश की किसी बंदरगाह से बैठकर सीधे कैनेडा जाते थे। परंतु 24 जनवरी, 1913 ई० को कैनेडा के हाई कोर्ट ने इस कानून को रद्द कर दिया। यह समाचार पाकर पंजाब के बहुत से लोग कैनेडा जाने के लिए कलकत्ता (कोलकाता), सिंगापुर तथा हांगकांग की बंदरगाहों पर पहुँच गए। परन्तु कैनेडा सरकार द्वारा भारतीयों से किए जाने वाले दुर्व्यवहार को देखते हुए कोई भी जहाज़ कम्पनी उन्हें कैनेडा पहुँचाने के लिए तैयार न हुई।
बाबा गुरदित्त सिंह के प्रयास- अमृतसर निवासी बाबा गुरदित्त सिंह सिंगापुर तथा मलाया में ठेकेदारी करता था। उसने 1913 ई० में ‘गुरु नानक नेवीगेशन कम्पनी’ स्थापित की। 24 मार्च, 1914 ई० को इस कम्पनी ने कामागाटामारू नामक एक जहाज़ किराये पर ले लिया जिसका नाम ‘गुरु नानक जहाज़’ रखा गया। उसे हांगकांग से 500 यात्री भी मिल गए। परन्तु हांगकांग की अंग्रेजी सरकार इस बात को सहन न कर सकी। उसने बाबा गुरदित्त सिंह को बंदी बना लिया। भले ही उसे अगले दिन रिहा कर दिया, फिर भी विघ्न पड़ जाने के कारण यात्रियों की संख्या घटकर केवल 135 रह गई।
गुरु नानक जहाज़ 23 मई, 1914 ई० को वेनकुवर (कैनेडा) की बंदरगाह पर पहुंचा, परन्तु यात्रियों को बंदरगाह पर न उतरने दिया गया। बाबा गुरदित्त सिंह प्रीवी कौंसिल में अपील करना चाहता था। परन्तु अंत में भारतीयों ने वापिस आना ही मान लिया। कामागाटामारू की दुर्घटना-23 जुलाई, 1914 ई० को जहाज़ वेनकुवर से वापिस भारत की ओर चल पड़ा। जब जहाज़ हुगली नदी में पहुंचा, तो लाहौर का डिप्टी कमिश्नर पुलिस बल के साथ वहां पहुंच गया। यात्रियों की तलाशी लेने के पश्चात् जहाज़ को 27 किलोमीटर दूर बजबज घाट पर खड़ा कर दिया गया। यात्रियों को यह बताया गया कि उन्हें वहां से रेलगाड़ी द्वारा पंजाब ले जाया जाएगा। यात्री कलकत्ता (कोलकाता) में ही कोई काम धंधा करना चाहते थे। परन्तु उनकी किसी ने एक न सुनी और उन्हें जहाज़ से नीचे उतार दिया गया। शाम के समय रेलवे स्टेशन पर इन यात्रियों की पुलिस से मुठभेड़ हो गई। पुलिस ने गोली चला दी। इस गोलीकांड में 40 व्यक्ति शहीद हो गए तथा बहुत से घायल हुए।
बाबा गुरदित्त सिंह बचकर पंजाब पहुंच गया। 1920 ई० में उसने गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस पर ननकाना साहिब में स्वयं को पुलिस के हवाले कर दिया। उसे 5 वर्ष के कारावास का दंड दिया गया।