ग़दर आन्दोलन के बाद पंजाब में अकाली आन्दोलन चला। यह 1921 ई० में आरम्भ हुआ और 1925 ई० तक चलता रहा। इसके प्रमुख कारण अग्रलिखित थे —
- गुरुद्वारों का प्रबन्ध महंतों के हाथ में था। वे अंग्रेजों के पिट्ठ थे। वे गुरुद्वारों की आय को ऐश्वर्य में उड़ा रहे थे। सिक्खों को यह बात स्वीकार नहीं थी।
- अंग्रेज़ों ने ग़दर सदस्यों पर बड़े अत्याचार किए थे। इनमें से 99% सिक्ख थे। इसलिए सिक्खों में अंग्रेजों के प्रति रोष था।
- 1919 ई० के कानून से भी सिक्ख असन्तुष्ट थे। इसमें जो कुछ उन्हें दिया गया वह उनकी आशा से बहुत था।
इन बातों के कारण सिक्खों ने एक आन्दोलन आरम्भ कर दिया जिसे अकाली आन्दोलन कहा जाता है। प्रमुख घटनाएं अथवा प्रमुख मोर्चे-
1. ननकाना साहिब की घटना- ननकाना साहिब का महंत नारायण दास बड़ा ही चरित्रहीन व्यक्ति था। उसे गुरुद्वारे से निकालने के लिए 20 फरवरी, 1921 ई० के दिन एक शान्तिमय जत्था ननकाना साहिब पहुंचा। महंत ने जत्थे के साथ बड़ा बुरा व्यवहार किया। उसके पाले हुए गुण्डों ने जत्थे पर आक्रमण कर दिया। जत्थे के नेता भाई लक्ष्मणदास तथा उसके साथियों को जीवित जला दिया गया।
2. हरमंदर साहिब के कोष की चाबियों की समस्या- हरमंदर साहिब के कोष की चाबियां अंग्रेजों के पास थीं। शिरोमणि कमेटी ने उनसे गुरुद्वारे की चाबियां माँगी, परन्तु उन्होंने चाबियां देने से इन्कार कर दिया। अंग्रेजों के इस कार्य के विरुद्ध सिक्खों ने बहुत-से प्रदर्शन किए। अंग्रेजों ने अनेक सिक्खों को बन्दी बना लिया। कांग्रेस तथा खिलाफ़त कमेटी ने भी सिक्खों का समर्थन किया। विवश होकर अंग्रेजों ने कोष की चाबियां शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी को सौंप दीं।
3. ‘गुरु का बाग’ का मोर्चा- गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग’ अमृतसर से लगभग 13 मील दूर अजनाला तहसील में स्थित है। यह गुरुद्वारा महंत सुन्दरदास के पास था जो एक चरित्रहीन व्यक्ति था। शिरोमणि कमेटी ने इस गुरुद्वारे को अपने हाथों में लेने के लिए 23 अगस्त, 1921 ई० को दान सिंह के नेतृत्व में एक जत्था भेजा। अंग्रेजों ने इस जत्थे के सदस्यों को बन्दी बना लिया। इस घटना से सिक्ख और भी भड़क उठे। उन्होंने और अधिक संख्या में जत्थे भेजने आरम्भ कर दिए। इन जत्थों के साथ भी बुरा व्यवहार किया गया। इनके सदस्यों को लाठियों से पीटा गया। परंतु अंत में सिक्खों ने गुरु का बाग मोर्चा शांतिपूर्ण ढंग से जीत लिया।
4. पंजा साहिब की घटना- ‘गुरु का बाग’ गुरुद्वारा आन्दोलन में भाग लेने वाले एक जत्थे को अंग्रेज़ों ने रेलगाड़ी द्वारा अटक जेल में भेजने का निर्णय किया। इस गाड़ी को हसन अब्दाल स्टेशन से गुज़रना था। पंजा साहिब के सिक्खों ने सरकार से प्रार्थना की कि रेलगाड़ी को हसन अब्दाल में रोका जाए ताकि वे जत्थे के सदस्यों को भोजन दे सकें। परन्तु सरकार ने जब सिक्खों की इस प्रार्थना को स्वीकार न किया तो भाई कर्म सिंह तथा भाई प्रताप सिंह नामक दो सिक्ख रेलगाड़ी के आंगे लेट गए और शहीदी को प्राप्त हुए। यह घटना 30 अक्तूबर, 1922 ई० की है।
5. जैतों का मोर्चा- जुलाई, 1923 ई० में अंग्रेजों ने नाभा के महाराजा रिपुदमन सिंह को बिना किसी दोष के गद्दी से हटा दिया। शिरोमणि कमेटी तथा अन्य सभी देश-भक्त सिक्खों ने सरकार के विरुद्ध गुरुद्वारा गंगसर (जैतों) में बड़ा भारी जलसा करने का निर्णय किया। 21 फरवरी, 1924 ई० को पाँच सौ अकालियों का एक जत्था गुरुद्वारा गंगसर के लिए चल पड़ा। नाभा की रियासत में पहुंचने पर उसका सामना अंग्रेज़ी सेना से हुआ। सिक्ख निहत्थे थे। फलस्वरूप 100 से भी अधिक सिक्ख शहीदी को प्राप्त हुए और 200 के लगभग सिक्ख घायल हुए।
6. सिक्ख गुरुद्वारा अधिनियम- 1925 ई० में पंजाब सरकार ने सिक्ख गुरुद्वारा कानून पास कर दिया। इसके अनुसार गुरुद्वारों का प्रबन्ध और उनकी देखभाल सिक्खों के हाथ में आ गई। धीरे-धीरे बन्दी सिक्खों को मुक्त कर दिया गया।इस प्रकार अकाली आन्दोलन के अन्तर्गत सिक्खों ने महान् बलिदान दिए। एक ओर तो उन्होंने गुरुद्वारों जैसे पवित्र स्थानों से अंग्रेजों के पिट्ठ महंतों को बाहर निकाला और दूसरी ओर सरकार के विरुद्ध एक ऐसी अग्नि भड़काई जो स्वतन्त्रता प्राप्ति तक जलती रही।