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नदी-जल-प्रदूषण के मुख्य कारण क्या हैं ? इसे कैसे रोका जा सकता है ?

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नदी-जल-प्रदूषण से अभिप्राय है-नदियों के जल में अपशिष्ट पदार्थों तथा विषैले रसायनों का मिलना। आज हमारे देश में नदी-जल-प्रदूषण की गंभीर समस्या बनी हुई है। गंगा तथा यमुना का जल तो बहुत अधिक प्रदूषित हो चुका है। ऐसे जल के उपयोग से पीलिया, पेचिस तथा टाइफाइड जैसी बीमारियाँ फैलती हैं। इससे जल जीवों के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है।
नदी-जल-प्रदूषण के कारण-नदी-जल-प्रदूषण के लिए स्वयं मनुष्य उत्तरदायी है।

वह निम्नलिखित तरीकों से नदियों के जल को प्रदूषित कर रहा है-

  1. कारखानों के अपशिष्ट पदार्थ तथा विषैले रसायन मिला जल नदियों में बहा दिया जाता है। उदाहरण के लिए चमड़ा साफ़ करने वाले कारखानों से निकला गंदा जल आस-पास की नदियों के जल को प्रदूषित कर रहा है।
  2. लोग अपने घरों का कूड़ा-कर्कट तथा गंदा जल नदियों में बहा देते हैं। यह जल बड़े नालों में से होता हुआ नदियों में जा मिलता है।
  3. किसान खेतों में उर्वरकों तथा कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। ये पदार्थ वर्षा के जल के साथ बहकर नदियों में जा मिलते हैं।
  4. भारत की लगभग सभी मुख्य नदियों पर बाँध बनाए गए हैं। इससे नदियों का जल-स्तर बढ़ गया है तथा जल के प्रवाह की गति कम हो गई है। परिणामस्वरूप कई प्रकार का खतरनाक अवसाद जल में घुला रहता है और वहीं इकट्ठा होता रहता है।
  5. कुछ नदियों पर धोबी-घाट बने हुए हैं जहाँ मैले कपड़े धोए जाते हैं। इस प्रकार नदियों का जल गंदा तथा विषैला होता रहता है।

नदी-जल-प्रदूषण को रोकने के उपाय-नदी-जल के प्रदूषण को रोकने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जाने चाहिएं

  1. प्रदूषित जल का पुनः चक्रण-नगरों के प्रदूषित जल को नगरों के निकट ही वैज्ञानिक ढंग से संशोधित करना चाहिए। इस प्रकार यह पुनः पीने योग्य बन जाएगा और नदी-जल-प्रदूषण पर भी नियंत्रण किया जा सकेगा।
  2. वनारोपण-अधिक-से-अधिक वन लगाए जाने चाहिए। वनस्पति धरातलीय प्रवाह को नियंत्रित करती है तथा कई अपशिष्ट पदार्थों को नदियों में बह जाने से रोकती है।
  3. खेतों की मेड़बंदी-खेतों में हल चलाते समय खेत के चारों ओर ऊँची मेड़ बना देनी चाहिए। यह मेड़ हल्की वर्षा या बाढ़ के समय मिट्टी तथा कीटनाशकों को खेतों से बाहर नहीं जाने देती।
  4. वैधानिक उपाय तथा जागरुकता-लोगों को जागरूक बना कर तथा वैधानिक उपायों द्वारा जल के प्रदूषण को रोकना भी अनिवार्य है। औद्योगिक इकाइयों द्वारा नदियों में गंदे जल की निकासी पर कड़ा प्रतिबंध लगा देना चाहिए। नदियों पर बने धोबी घाट हटा देने चाहिए।
  5. दंडनीय अपराध बनाना-वास्तव में जल को प्रदूषित करना एक दंडनीय अपराध बना देना चाहिए।
  • अप्रवाह प्रणाली-किसी प्रदेश की मुख्य नदी तथा उसकी सहायक नदियाँ मिलकर जल प्रवाह की एक विशेष रूपरेखा बनाती हैं। इसे अप्रवाह प्रणाली कहते हैं।
  • सहायक नदी-वह नदी जो अपने जल को मुख्य नदी में मिला देती है, उसे मुख्य नदी की सहायक नदी कहते हैं।
  • भारत की मुख्य नदियाँ-भारत की नदियों को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-हिमालय की नदियाँ तथा प्रायद्वीपीय पठार की नदियाँ हिमालय की मुख्य नदियाँ सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र हैं। प्रायद्वीपीय भारत की मुख्य नदियों में कावेरी, कृष्णा, गोदावरी, ताप्ती तथा नर्मदा के नाम लिए जा सकते हैं।
  • झीलें-भारत की प्रमुख झीलें डल, वूलर, सांभर, चिल्का, कोलेरू, पुलिकट इत्यादि हैं।
  • नदियों का महत्त्व नदियाँ पेयजल की आपूर्ति करती हैं, सिंचाई सुविधाएँ तथा परिवहन सुविधाएँ प्रदान करती हैं। नदियों पर बाँध बना कर जल विद्युत् भी प्राप्त की जाती है।।
  • नदी-प्रदूषण-नदियों में गिरने वाले अपशिष्ट पदार्थों तथा रासायनिक पदार्थों रे नदियों का जल निरंतर प्रदूषित हो रहा है। यह जल पीने योग्य नहीं है।
  • नदी-प्रदूषण को रोकने के उपाय-नदी-जल के उचित प्रबंधन, खेतों की मेड़बंदी तथा राष्ट्रीय जल ग्रिड का निर्माण करके नदी के प्रदूषण को रोका जा सकता है।

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