संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका वाक्य के दूसरे शब्दों से सम्बन्ध जाना जाए, उस रूप को कारक कहते हैं।
जैसे – मोहन ने पुस्तक को मेज़ पर रख दिया।
विभक्तिकारक प्रकट करने के लिए संज्ञा अथवा सर्वनाम के साथ ‘ने’, ‘को’, ‘से’ आदि जो चिह्न लगाए जाते हैं, उन्हें विभक्ति कहा जाता है।
हिन्दी में आठ कारक हैं। इनके नाम और विभक्ति चिहन इस प्रकार हैं : –
कारक – विभक्ति चिहन
1. कर्ता – ने
2. कर्म – को
3. करण – से, के द्वारा, के साथ
4. सम्प्रदान – को, के लिए, वास्ते
5. अपादान – से (पृथकत्व, बोधक)
6. सम्बन्ध – का, के, की
7. अधिकरण – में, पर
8. सम्बोधन – हे, अरे, रे
1. कर्ता – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध होता है, उसे कर्ता कारक कहा जाता है।
जैसे – (i) मोहन पुस्तक पढ़ता है।
(ii) सोहन ने दूध पिया।
2. कर्म – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप पर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं।
जैसे – श्याम पाठशाला को जाता है।
3. करण – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से कर्ता के काम करने के साधन का बोध हो, उसे करण कारक कहा जाता है।
जैसे – राम ने बाण से बालि को मारा।
4. सम्प्रदान – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप के लिए क्रिया की जाए, उसे सम्प्रदान कारक कहा जाता है।
जैसे – अध्यापक विद्यार्थियों के लिए पुस्तकें लाया।
5. अपादान – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से पृथक्कता, आरम्भ, भिन्नता आदि का बोध होता है, उसे अपादान कारक कहा जाता है।
जैसे – वृक्ष से पत्ते गिरते हैं।
6. सम्बन्ध – संज्ञा या सर्वनाम का जो रूप एक वस्तु का दूसरी वस्तु के साथ सम्बन्ध प्रकट करे, उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं।
जैसे – यह मोहन का घर है।
7. अधिकरण – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं।
जैसे – वीर सैनिक युद्ध भूमि में मारा गया।
8. सम्बोधन – संज्ञा का जो रूप चेतावनी या किसी को पुकारने का सूचक हो।
जैसे- हे ईश्वर ! हमारी रक्षा करो।