औपनिवेशिक शासन के दौरान जब पश्चिमी वस्त्र शैली भारत में आई तो अनेक पुरुषों ने इन वस्त्रों को अपना लिया। इसके विपरीत स्त्रियां परंपरागत कपड़े ही पहनती रहीं।
कारण-
- भारत का पारसी समुदाय काफ़ी धनी था। वे लोग पश्चिमी संस्कृति से भी प्रभावित थे। अत: सबसे पहले पारसी लोगों ने ही पश्चिमी वस्त्रों को अपनाया। भद्रपुरुष दिखाई देने के लिए उन्होंने बिना कालर के लंबे कोट, बूट और छड़ी को अपनी पोशाक का अंग बना लिया।
- कुछ पुरुषों ने पश्चिमी वस्त्रों को आधुनिकता का प्रतीक समझ कर अपनाया।
- भारत के जो लोग मिशनरियों के प्रभाव में आकर ईसाई बन गये थे, उन्होंने भी पश्चिमी वस्त्र पहनने शुरू कर दिए।
- कुछ बंगाली बाबू कार्यालयों में पश्चिमी वस्त्र पहनते थे, जबकि घर में आकर अपनी परंपरागत पोशाक धारण कर लेते थे।
इतना होने के बावजूद ग्रामीण समाज में पुरुषों तथा स्त्रियों के पहरावे में कोई विशेष अंतर नहीं आया। केवल मशीनों से बना कपड़ा सुंदर तथा सस्ता होने के कारण अधिक प्रयोग किया जाने लगा। इसके अतिरिक्त भारतीय पहरावे तथा पश्चिमी पहरावे के बीच टकराव की घटनाएं भी सामने आईं। परंतु जातिगत नियमों में बंधा भारतीय ग्रामीण समुदाय पश्चिमी पोशाक-शैली से दूर ही रहा।
समाज में स्त्रियों की स्थिति- इससे पता चलता है कि समाज पुरुष-प्रधान था जिसमें नारी स्वतंत्र नहीं थी। उसका कार्य घर की चार दीवारी तक ही सीमित था। वह नौकरी पेशा नहीं थी।