हॉकी का मैदान भी एक तरह की पाठशाला है जहां से विद्यार्थी शारीरिक शिक्षा के अनेक गुण ग्रहण करता है जिनसे वह जीवन में उन्नति के उच्च शिखर को छूता है और जीवन का हर पक्ष से भरपूर आनन्द उठाता है। हॉकी के क्रीड़ा-क्षेत्र में हम शारीरिक शिक्षा के निम्नलिखित गुणों को ग्रहण करते हैं –
1. सहनशीलता (Toleration)- खेल के मैदान में हम सहनशीलता का पाठ पढ़ते हैं। वैसे तो सभी खिलाड़ी चाहते हैं कि जीत उनकी टीम की ही हो। परन्तु कई बार लाख चाहने पर भी विरोधी टीम विजयी हो जाती है। ऐसी स्थिति में पराजित टीम के खिलाड़ी दिल छोड़ कर नहीं बैठ जाते बल्कि अपना मनोबल ऊंचा रखते हैं। वे हार-जीत को एक ही समान समझते हैं। इस प्रकार खेल के मैदान से विद्यार्थियों को सहनशीलता की व्यावहारिक ट्रेनिंग मिलती है।
2. अनुशासन (Discipline)- खेल के मैदान में खिलाड़ी अनुशासन में रहने की कला सीखते हैं। उन्हें पता चलता है कि अनुशासन ही सफलता की कुंजी है। वे खेल में भाग लेते समय अनुशासन का पालन करते हैं। वे अपने कप्तान की आज्ञा मानते हैं तथा रैफरी के निर्णयों को सहर्ष स्वीकार करते हैं। खेल में पराजय को सामने स्पष्ट शारीरिक शिक्षा-इसके गुण एवं उद्देश्य देखते हुए भी वे कोई ऐसा अभद्र व्यवहार नहीं करते जिससे कोई उन्हें अनुशासनहीन – कह सके।
3. चरित्र विकास (Character Development)- हॉकी के खेल में भाग लेने से विद्यार्थियों में सहयोग, प्रेम, सहनशीलता, अनुशासन आदि गुणों का विकास होता है जिनसे उनके चरित्र का विकास होता है। इस खेल में भाग लेने से उनमें सहयोग की भावना विकसित होती है। वे निजी हितों को समूचे हितों पर न्योछावर कर देते हैं।
4. व्यक्तित्व का विकास (Development of Personality)- हॉकी के खेल में भाग लेने से विद्यार्थियों में कुछ ऐसे गुण विकसित हो जाते हैं, जिनसे उनके व्यक्तित्व का विकास हो जाता है। उनमें सहयोग तथा सहनशीलता आदि गुण विकसित होते हैं तथा उनका शरीर सुन्दर एवं आकर्षक बन जाता है। ये सभी अच्छे व्यक्तित्व के चिन्ह हैं।
5. अच्छे नागरिक बनाना (Creation of Good Citizens)- हॉकी के मैदान में खिलाड़ी में कर्त्तव्य-पालन, आज्ञा पालन, सहयोग, सहनशीलता आदि गुण विकसित हो जाते हैं जो उन्हें एक अच्छा नागरिक बनने में पर्याप्त सहायता पहुंचाते हैं। वे नागरिकता के सभी कर्तव्यों का भली-भान्ति पालन करते हैं। इस प्रकार हॉकी का मैदान अच्छे नागरिकों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
6. सहयोग (Co-operation)- हॉकी के खेल में भाग लेने वाला खिलाड़ी प्रत्येक खिलाड़ी का कहना मानता है। वह अपना विचार दूसरों पर बलात् लागू नहीं करवाता है, अपितु अपने विचार विनिमय के द्वारा खेल के मैदान में संयुक्त विचारधारा बनाता है। इस प्रकार सहयोग की भावना उत्पन्न होती है।
7. राष्ट्रीय भावना (National Spirit)- हॉकी का मैदान एक ऐसा स्थान है जहां हम बिना धर्म और वर्ग के आधार पर भाग ले सकते हैं। कोई भी खिलाड़ी खेल के मैदान में से किसी खिलाड़ी को धर्म के आधार पर टीम से बाहर नहीं निकाल सकता। इस प्रकार . खेल के मैदान में समानता और राष्ट्रीय एकता की भावना पैदा होती है।
8. आत्म-विश्वास की भावना (Self-Confidence) हॉकी के खेल के मैदान में खिलाड़ियों में आत्म-विश्वास की भावना पैदा होती है। जैसे, वह विजय-पराजय को एक समान समझता है। वही खिलाड़ी खेल के मैदान में सफल होता है जो धैर्य और विश्वास के साथ खेले। इससे सिद्ध होता है कि हॉकी के खेल के द्वारा खिलाड़ियों में आत्म-विश्वास की भावना पैदा होती है।
9. विजय-पराजय को समान समझने की भावना (Spirit of giving equal importance to Victory of Defeat) हॉकी के खेल के द्वारा खिलाड़ियों में विजय-पराजय को एक समान समझने की भावना पैदा होती है। हमें कभी भी विरोधी टीम का मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए या विजय की प्रसन्नता में पागल नहीं होना चाहिए। पराजित टीम को सदैव प्रोत्साहन देना चाहिए। यदि उसकी पराजय होती है तो उसे निराश और उत्साहहीन नहीं होने देना चाहिए अपितु उसका हौसला बढ़ाना चाहिए।
10. त्याग की भावना (Spirit of Sacrifice)- हॉकी के खेल के मैदान में त्याग की भावना अत्यावश्यक है। जब हम खेल में भाग लेते हैं तो हम अपने स्कूल, प्रान्त, क्षेत्र और सारे राष्ट्र के लिए अपने हित का त्याग करके उसकी विजय का श्रेय राष्ट्र को देते हैं। अत: यह सिद्ध होता है कि खेलें सदैव त्याग चाहती हैं। – ड्यूक ऑफ़ विलिंग्टन ने नेपोलियन को वाटरलू (Waterloo) के युद्ध में पराजित करने के पश्चात् कहा था, “वाटरलू का युद्ध एटन और हैरो के खेल के मैदानों में जीता गया।” इससे यह सिद्ध होता है कि खेलें अच्छे नेता पैदा करने में सहायक होती हैं।