साक्षात्कार में न विकलांग अपनी पीड़ा बताता – है और न रोता है, न दर्शक ही आँसू बहाते हैं। उद्घोषक अपने उद्देश्य में सफल नहीं होता तो कार्यक्रम समाप्त करने को कह देता है। दूरदर्शन पर समय की कीमत है। प्राप्त धन के अनुरूप ही दूरदर्शन पर समय दिया जाता है। कवि ने इस प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है और उसे निंदनीय माना है।