महाकाल लगातार जीवों को मार रहा है। जो प्रबल जीवन-इच्छा वाले हैं, उनका काल से संघर्ष निरन्तर चल रहा है। जीर्ण और दुर्बल झड़ रहे हैं। अपने व्यवहार की जड़ता को त्यागकर नित्य बदल रही परिस्थिति के अनुरूप अपने स्वयं को ढालकर निरन्तर गतिशील रहने वाला ही काल की मार से बच सकता है। परिवर्तन ही जीवन है।