बढ़ते अस्पताल : घटता स्वास्थ्य संकेत बिंदु –
- प्रस्तावना,
- अस्वस्थता के कारण,
- स्वास्थ्य – सुविधाओं की भूमिका,
- चिकित्सा पर निर्भरता का परिणाम,
- उपसंहार।
प्रस्तावना – ईश्वर या प्रकृति ने मनुष्य को दवाओं के साथ पैदा नहीं किया। दवाएँ आदमी ने बनायीं। दवाओं की आवश्यकता अस्वस्थ होने पर पड़ी। स्वाभाविक और मुक्त जीवन बिताने वाले पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि को देखा जाये तो इन प्राणियों ने किसी चिकित्सा – प्रणाली की खोज नहीं की। न कोई अस्पताल ही खोले, पर वे मनुष्य से अधिक स्वस्थ हैं, अपनी पूरी आयु तक जीते हैं।
इसका सीधा- सा अर्थ यही है कि केवल चिकित्सा की सुविधाएँ बढ़ने से मनुष्यों का स्वस्थ रहना सम्भव नहीं है। आज जितने अस्पताल बढ़ते जा रहे हैं उतने ही रोग भी बढ़ते जा रहे हैं। अतः स्वस्थ रहने के लिए क्या उपाय होने चाहिए, इस पर विचार करना आवश्यक है।
अस्वस्थता के कारण – वातावरण का प्रदूषण, अनियमित दिनचर्या, विषम जलवायु, संक्रमण, असन्तुलित भोजन, कुपोषण, अनियन्त्रित आचरण तथा स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता आदि अस्वस्थता के प्रमुख कारण हैं। यह बात कोविड – 19 महामारी के दौरान सही साबित हुई। स्वास्थ्य का सम्बन्ध तन और मन दोनों से है। केवल शरीर का स्वस्थ होना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि मन का स्वस्थ होना भी परम आवश्यक है।
किसी भी रूप में शरीर की स्वाभाविक कार्य – प्रणाली में व्यतिक्रम उत्पन्न होना रोग है। रोग से मुक्त होने के लिए औषधि ली जाती है, चिकित्सा कराई जाती है। लेकिन तनिक – तनिक – सी बातों पर दवाओं का सेवन करना लाभ के बजाय हानि पहुँचाता है।
स्वास्थ्य- सुविधाओं की भूमिका – आजकल स्वास्थ्य – सुविधाओं अथवा चिकित्सासुविधाओं का पर्याप्त विस्तार हुआ है। विज्ञान की कृपा से नित्य नयी औषधियाँ सामने आ रही हैं। अस्पताल खुलते जा रहे हैं। डॉक्टरों की संख्या में भी निरन्तर वृद्धि हो रही है।
किन्तु जैसे – जैसे अस्पताल, और क्लीनिक खुलते जा रहे हैं तथा परीक्षण के नये – नये उपकरण विकसित होते जा रहे है वैसे – वैसे रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। हम समझते थे कि जितने अधिक अस्पताल और डॉक्टर होंगे, लोगों का स्वास्थ्य उतना ही अच्छा होगा। परन्तु यह भ्रम अब टूटता जा रहा है।
चिकित्सा पर निर्भरता का परिणाम – रोगों से बचने की जो क्षमता हमें प्रकृति से प्राप्त हुई थी, बह निरन्तर कम होती जा रही है। औषधियाँ एक रोग को ठीक करती हैं तो दस को पैदा कर रही हैं। उनकी प्रतिक्रियाएँ बड़ी जटिल और दूरगामी हैं।
नये – नये रोग उत्पन्न हो रहे हैं। कैन्सर और एड्स जैसे असाध्य रोग आम होते जा रहे हैं। बच्चे भी मधुमेह तथा रक्तचाप से पीड़ित हैं। इसके साथ ही अस्पतालों में रोगियों का शोषण भी बड़ी समस्या बन चुका हैं। अनावश्यक जाँचें कराना मरीजों के शोषण का लज्जाजनक पहलू है।
उपसंहार – एक कहावत है – इलाज से बचाव अधिक महत्त्वपूर्ण है। रोगों से बचाव कैसे हो? इसके लिए स्वस्थ जीवनचर्या को अपनाना ही एकमात्र उपाय है। उचित आहार – विहार, व्यायाम, स्वच्छता, सावधानी अपनाने से शरीर बलवान, रोग प्रतिरोधी – क्षमतायुक्त और स्वस्थ रहेगा। अस्पतालों पर निर्भरता घटेगी।