संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियाँ हिन्दी के सुप्रसिद्ध आंचलिक कहानीकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ की कहानी ‘संवदिया’ से ली गई हैं जिसे हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित किया गया है।
प्रसंग- बड़ी हवेली की बहुरिया ने हरगोबिन को बुलाया है। संवाद पहुँचाना है उसे अपनी माँ के पास। हरगोबिन को इस बुलावे पर आश्चर्य हो रहा है कि आज तो डाकघर खुल जाने से चिट्ठी-पत्री की सुविधा है फिर भला उसकी बुलाहट क्यों हुई है ?
व्याख्या- गाँव की बड़ी हवेली में रहने वाली बड़ी बहुरिया ने हरगोबिन को बुलवाया है। उसे अपनी माँ के पास कोई संदेश भिजवाना है। हरगोबिन संवदिया है अर्थात् ‘संवाद ले जाने वाला’। आज भी किसी को संवदिया की जरूरत पड़ सकती है यह जानकर हरगोबिन को अचरज हो रहा था। एक जमाना था जब डाक की समुचित व्यवस्था न थी पर अब तो गाँव-गाँव डाकघर खुल गए हैं अब भला संवदिया की क्या जरूरत पर बड़ी बहू जरूर कोई ऐसा संवाद भिजवाना चाहती हैं जिसे चिट्ठी-पत्री में नहीं लिख सकर्ती वरना चिट्ठी तो आज विदेशों तक भेजी जा सकती है। आदमी घर बैठे ही लंका तक खबर भेज सकता है और वहाँ से कुशलक्षेम का संवाद मँगा सकता है। पर आज बड़ी बहू ने हरगोबिन संवदिया को बुलाया है तो जरूर कोई खास बात होगी, कोई खास संवाद भिजवाना होगा तभी तो उसको बुलाया है।
हरगोबिन संवदिया जब बड़ी हवेली के टूटे हुए दरवाजे पर पहुँचा तो सदैव की भाँति उसने वातावरण को भाँप कर यह अनुमान लगाने का प्रयास किया कि अवश्य ही उसे कोई महत्त्वपूर्ण समाचार पहुँचाने के लिए बुलाया गया है।