संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ दूसरा देवदास’ नामक कहानी से ली गई हैं। इसकी लेखिका कहानीकार ममता कालिया हैं। यह कहानी हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘अन्तरा भाग – 2’ में संकलित है।
प्रसंग – संभव दिल्ली का निवासी था और अपनी नानी के घर हरिद्वार आया था। बैसाखी के स्नान हेतु हर की पौड़ी पर जो भीड़ संभव ने देखी वह अभूतपूर्व थी और दिल्ली में रोज दिखने वाली भीड़ से अलग थी। आध्यात्मिक लक्ष्य लेकर तीर्थ स्थलों पर एकत्र होने वाली भीड़ के चरित्र का लेखक ने इस अवतरण में चित्रण किया है।
व्याख्या- संभव ने भीड़ तो दिल्ली में भी देखी थी बल्कि रोज ही भीड़ – भाड़ से भरी दिल्ली वह देखता था। दफ्तर जाती भीड़, सामान खरीदती – बेचती भीड़, तमाशा देखती भीड़, सड़क पार करती भीड़ लेकिन उस भीड़ में और हर की पौड़ी हरिद्वार में गंगा स्नान के लिए बैसाखी के मेले में एकत्र भीड़ में बहुत अन्तर था। इस भीड़ का अंदाज निराला था और इसमें समाए हर व्यक्ति के उद्देश्य में समानता थी। मेले में एकत्र भीड़ विभिन्न वर्गों की थी।
उनमें भाषा, धर्म, जाति का अन्तर था पर वे अन्तर यहाँ गौण हो गए थे, उद्देश्य की एकरूपता स्नान करके पुण्य लाभ कमाना – प्रमुख हो गई थी। सबके हृदय में जीवन की कल्याण कामना प्रमुख थी। दिल्ली की भीड़ दौड़ती सी लगती, एक - दूसरे को पीछे धकिया कर स्वयं आगे निकलने की चाह वहाँ भीड़ के हर व्यक्ति के मन में रहती थी पर यहाँ एकत्र भीड़ में यह प्रवृत्ति रंचमात्र भी नहीं थी। सब लोग स्नान - ध्यान में व्यस्त थे। स्नान से भी ज्यादा वक्त ध्यान में लगाकर भीड़ के लोग अपने जीवन में कल्याण की कामना कर रहे थे।