यह कथन नायकराम का है। जगधर के पूछने पर नायकराम ने व्यंग्यपूर्वक यह बात कही थी कि चूल्हा ठंडा किया होता तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता। इस कथन का आशय यह है कि सूरदास के किसी शत्रु ने ईर्ष्या के कारण उसकी झोंपड़ी जलाई है। झोंपड़ी जलाकर वह अपने मन की शत्रुता की आग को ठंडा करना चाहता था।