(A) DNA कुंडली के पैकेजिंग- डी.एन.ए. गुणसूत्रों के – ऊपर DNA के विन्यास को DNA पैकेजिंग कहते हैं इसे स्पष्ट करने के लिए न्यूक्लियोसोम मॉडल दिया गया है।
(i) प्रोकेरियोट (असीमकेन्द्रकी) में DNA पैकेजिंगप्रोकेरियोट में (ई.कोलाई) स्पष्ट केन्द्रक नहीं पाया जाता है फिर भी DNA सम्पूर्ण कोशिका में फैला नहीं रहता।
DNA ऋणावेशित व वलयाकार होता है। DNA कुछ धनावेशित नॉनहिस्टॉन प्रोटीन से जुड़कर एक जगह स्थित होते हैं जिसे केन्द्रकाभ कहते हैं।
(ii) यूकेरियोट (ससीमकेन्द्रकी) में DNA पैकेजिंगयूकेरियोट में DNA पैकेजिंग की क्रिया जटिल होती है क्रोमोसोम में DNA की व्यवस्था या पैकेजिंग को R.D कार्नबर्ग व J.O. थॉमस ने 1974 में बताया कि DNA की पूरी लम्बाई में अनेक ऋणावेशित स्थल होते हैं। इन्हीं स्थलों पर धनावेशित हिस्टोन प्रोटीन के अणु आबंधित रहते हैंDNA व हिस्टोन प्रोटीन के इस सम्मिश्रण को क्रोमेटिन कहते हैं। क्रोमेटिन की इस व्यवस्था को औडेट व अन्य वैज्ञानिकों ने (1975) न्यूक्लियोसोम कहा।
(B) रूपान्तरित सिद्धान्त के जीव रासायनिक लक्षण- 1944 में ऐवेरी, मैक्लिओड तथा मेकार्टी ने मिलकर यह खोजा कि ग्रिफिथ के द्वारा बताया गया रूपान्तरण पदार्थ DNA ही है।

ऐवेरी व उनके साथियों का रूपान्तरण प्रयोग
इन्होंने इस क्रिया को प्रयोग द्वारा समझाने के लिए संवर्धन में स्टेप्टोकॉकस न्यूमोनी के अनुग्र (R-II) का संवर्धन तैयार किया तथा उग्र प्रभेद (SHI) के जीवाणु के सार में से कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन, DNA तथा RNA को पृथक किया। इन्होंने अनुग्र प्रभेद (R-II) को संवर्धित किया तथा उसके संवर्धन माध्यम में पृथक किये गए उपरोक्त रासायनिक घटकों को एक-एक करके अलग-अलग डाला तो उन्होंने यह पाया कि DNA घटक में यह क्षमता थी कि वह R-प्रकार की कोशिकाओं को S-प्रकार की कोशिका में बदल सके।
रूपान्तरित S कोशिकाएं सभी लक्षणों में S-III उग्र प्रभेद के समान थी क्योंकि उनमें DNA भाग S-III प्रभेद द्वारा प्राप्त किया गया था। इन प्रयोगों से स्पष्ट हो गया कि DNA ही आनुवंशिक सामग्री है न कि प्रोटीन।
इन वैज्ञानिकों ने प्रयोग के परिणाम की पुष्टि करने के लिए इस बात का भी पता लगाया कि प्रोटीन का पाचन करने वाला प्रोटीऐज व RNA का पाचन करने वाला एंजाइम राइबोजन्यूक्लिज इस रूपान्तरण को प्रभावित नहीं करते हैं अतः रूपान्तरित पदार्थ प्रोटीन व RNA नहीं होता है।
प्रयोग में देखा कि रूपान्तरण प्रक्रिया डी-ऑक्सी राइबोन्यूक्लिज से पाचन के पश्चात् बंद हो जाती है। अतः इससे स्पष्ट होता है कि DNA ही रूपान्तरण हेतु जिम्मेदार है।
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