प्रकाश वैद्युत् प्रभाव की व्याख्या करने में तरंग सिद्धान्त निम्न कारणों से असफल रहा
(1) तरंग सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक आवृत्ति के प्रकाश से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होना चाहिए, क्योंकि आपतित प्रकाश से इलेक्ट्रॉन ऊर्जा का अवशोषण करता रहे और जब उत्सर्जन के लिए आवश्यक ऊर्जा एकत्र हो जाये तो उसका उत्सर्जन हो जाना चाहिए। वास्तविकबा इससे भिन्न है। वास्तव में आपतित प्रकाश की आवृत्ति जब देहली आवृत्ति (vo) से अधिक होती है, तभी इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होता है।
(2) तरंग सिद्धान्त के अनुसार प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करनी चाहिए। तीव्रता बढ़ाने पर प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा बढ़नी चाहिए, क्योंकि तीव्रता बढ़ाने पर पृष्ठ पर आपतित ऊर्जा बढ़ जाती है अतः इलेक्ट्रॉन अधिक ऊर्जा का उत्सर्जन करे और उसकी गतिज ऊर्जा बढ़ जानी चाहिए जबकि वास्तविकता यह है कि प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती है।
(3) तरंग सिद्धान्त के अनुसार पृष्ठ पर प्रकाश के आपतन एवं इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन के मध्य कुछ-न-कुछ समय अवश्य लगना चाहिए, क्योंकि इलेक्ट्रॉन को उत्सर्जन के लिए आवश्यक ऊर्जा का अवशोषण करने में कुछ-न- कुछ समय अवश्य लगना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रकाश तरंगों द्वारा संचरित ऊर्जा धातु के किसी एक इलेक्ट्रॉन को न मिलकर, प्रकाशित क्षेत्रफल में उपस्थित सभी इलेक्ट्रॉनों में वितरित होगी।
वास्तविकता इसके भी भिन्न है। वास्तव में प्रकाश के आपतन एवं इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन के मध्य कोई समय-पश्चता नहीं होती है।