सन्दर्भ तथा प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कवि नागार्जुन की रचना ‘यह दंतुरित मुसकान’ से लिया गया है। कवि ने यहाँ अपने शिशु पुत्र की मनोहर मुसकान का चित्रण किया है।
व्याख्या- कवि अपने शिशु पुत्र की नएनए दाँतों वाली मुसकान देखकर भाव-विभोर है। वह कहता है- हे शिशु! तुम्हारी यह नए दाँतों वाली मुसकान मुर्दो में भी जान डाल सकती है। तुम्हारे धूल से सने अंग देखकर लगता है मानो कमल तालाब को छोड़कर मेरी कुटिया में खिल गया है।
तुम्हारा स्पर्श इतना कोमल है कि कठोर पत्थरों को भी पिघलाकर पानी बना सकता है। तुम्हें छूते ही मुझे शेफाली के फूलों जैसी कोमलता का अनुभव हो रहा है। मैं तो बाँस और बबूल’ के समान नीरस और कँटीला व्यक्ति था। तुम्हारे जादू भरे स्पर्श ने मुझे फूलों जैसी मृदुता और सरसता से भर दिया।