वृद्धावस्था का आरम्भ 60 वर्ष की उम्र से माना जाता है। इस उम्र में व्यक्ति अपनी सेवाओं से सेवानिवृत्त होता है। और वह घर के सदस्यों के साथ पूर्ण समय बिताते हुए शांत एवं स्थिर जीवन जीना चाहता है। वृद्धावस्था की इस शांति में कई प्रकार की समस्याएँ आती हैं। ये समस्याएँ शारीरिक, आर्थिक तथा मानसिक प्रकार की होती हैं। सेवानिवृत्ति के बाद उसकी मासिक आय पेंशन मिलने की अवस्था में कम या फिर न मिलने के कारण बिल्कुल बंद हो जाती है।
अतः ऐसी स्थिति में उसे अपनी आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये घर के अन्य सदस्यों; जैसे-बेटे-बहू आदि पर निर्भर रहना पड़ता है। यदि वृद्ध व्यक्ति के पुत्र व्यवसाय प्राप्त नहीं कर पाते या पुत्री का विवाह नहीं हो पाया है तो उसकी आर्थिक समस्याएँ और भी बढ़ जाती हैं तथा मानसिक यातना भी झेलनी पड़ती है। सेवानिवृत्ति के बाद उसका कार्यालय जाना बन्द हो जाता है। अत: उसे एकाकी जीवन व्यतीत करने की समस्या आती है।
इस समय घर के अन्य सदस्य किसी न किसी कार्य में व्यस्त होते हैं। अतः वृद्ध घर में बिल्कुल अकेले पड़ जाते हैं। जीवन – साथी के अभाव में यह अकेलापन अवसाद तथा तनाव उत्पन्न कर देता है। वृद्धावस्था में सेवानिवृत्ति के बाद उसके मित्र भी मिलने नहीं आ पाते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद उसपर कोई काम नहीं होता है। अतः खाली समय काटने में अत्यन्त परेशानी उत्पन्न हो जाती है।
परिवार के सदस्यों से वैचारिक मतभेद होने के कारण उनके सम्बन्ध भी बिगड़ जाते हैं। पत्नी से तनावे व वैमनस्य भी हो जाता है। वृद्धावस्था की समस्याओं के प्रति परिवार के सभी सदस्यों को उनका विशेष ध्यान रखना चाहिए तथा वृद्धों को भी परिवार के सदस्यों के साथ सामंजस्य रखना चाहिए ताकि उनकी अपनी प्रतिष्ठा बनी रहे।