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वृद्धावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन व उससे सम्बन्धित समस्याओं के बारे में विस्तार से लिखिए।

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वृद्धावस्था में होने वाले परिवर्तन व उससे सम्बन्धित समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

(1) वृद्धावस्था में नवीन कोशिकाओं को निर्माण टूट – फूट की दर से कम होने लगता है। अतः वृद्धावस्था में शरीर को भार कम होने लगता है। वसीय ऊतकों, तेल व स्वेद ग्रन्थियों की सक्रियता घट जाती है, जिससे त्वचा पतली, रूखी – सूखी व झुरींदार होकर जगह-जगह से लटक जाती है।

(2) वृद्धावस्था में दाँत गिरना प्रारम्भ हो जाते हैं या दाँतों में संक्रमण के कारण वे निकलवाने पड़ते हैं। ऐसी स्थिति में उसे बोलने तथा भोजन करने में समस्या उत्पन्न होती है।

(3) सिर के बाल या तो कम होने लगते हैं या सिर गंजा हो जाता है। हाथ-पैर के नाखून मोटे व सख्त एवं भंगुर हो जाते हैं। इससे व्यक्ति मानसिक तनाव महसूस करता है।

(4) इस अवस्था में व्यक्ति की कमर व कंधे आगे की ओर झुक जाते हैं। इससे उसका कद छोटा लगने लगता है। इससे उसे चलने-फिरने में समस्या उत्पन्न होती है।

(5) सक्रिय माँसपेशियाँ कम हो जाती हैं। हड्डियों के जोड़ों में उपस्थित स्नेहक द्रव्य की मात्रा कम हो जाती है, इससे जोड़ों की सक्रियता कम हो जाती है, इनमें दर्द रहता है तथा उठने-बैठने व चलने-फिरने में कष्ट होता है।

(6) वृद्धावस्था में नाड़ी संस्थान कमजोर हो जाता है। इस कारण से उनके देखने, सुनने, सँघने, स्पर्श करने के स्वाद आदि की शक्ति क्षीण हो जाती है। दृष्टि दोष हो जाता है। स्वादिष्ट भोजन भी स्वादहीन लगता है। स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है, हाथ-पैर काँपने लगते हैं। जरावस्था आते-आते वृद्धों में गिरने व लड़खड़ाने आदि का खतरा भी बढ़ जाता है।

(7) अन्त: स्रावी ग्रन्थियों से निकलने वाले विभिन्न हारमोनों की मात्रा में कमी आ जाती है। पैराथारमोन हारमोन की कमी से अस्थिविकृति रोग ‘आस्टियो पोरोसिस’ होने की संभावना बढ़ जाती है। इस रोग के कारण हड्डयाँ कमजोर हो जाती हैं। तथा मामूली झटका लगने पर टूट जाती हैं। जो पुनः आसानी से जुड़ नहीं पाती है।

(8) उम्र के बढ़ने के साथ – साथ रक्त में कोलेस्ट्राल व लिपिड्स के स्तर बढ़ने लगते हैं। इससे हृदय सम्बन्धी रोग, उच्च रक्तचाप, छाती का दर्द (एन्जाइम) आदि की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।

(9) वृद्धावस्था में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इससे विभिन्न प्रकार के कायिक रोगों के होने की संभावना बढ़ जाती है। शीत ऋतु में शरीर के तापमान का नियमन कठिन हो जाता है।

(10) वृद्धावस्था में व्यक्ति को पूरी नींद नहीं आती है। नींद की मात्रा में एक या दो घण्टों की कमी आ जाती है, इससे अधिकतर वृद्धों को अनिद्रा का रोग हो जाता है।

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