वृद्धावस्था में आयु की वृद्धि के साथ सामाजिक क्रियाकलापों में सक्रियता भी कम हो जाती है। सेवानिवृत्ति के बाद उसके साथियों का साथ भी छूट जाता है, जीवन साथी की मृत्यु या घनिष्ठ मित्रों की मृत्यु तथा विविध बीमारियों के चलते स्वास्थ्य के कारण उसका दायरा सीमित व संकुचित हो जाता है। सेवा निवृत्ति के बाद उसके साथी ऐसे भी होते हैं जो दूर-दूर के होते हैं जो पुन: एकात्रित नहीं हो पाते हैं।
विवाहित वृद्धों में सामाजिक सक्रियता अधिक पायी जाती है। वृद्ध व्यक्ति के लिये पारिवारिक समूह ही उनके सामाजिक जीवन का केन्द्र होता है। विचारों में मतभेद के कारण कम आयु के पारिवारिक सदस्य अपने वृद्ध बुजुर्गों का खुले दिल से स्वागत भी नहीं कर पाते, ऐसे में आयु के बढ़ने के साथ – साथ वृद्ध व्यक्ति की अपने आप में रुचि बढ़ती जाती है तथा दूसरों में उसकी रुचि घटती जाती है।