वृद्धावस्था में वृद्धों की देखभाल निम्नानुसार करनी चाहिए –
(1) सन्तुलित आहार:
वृद्धों के शारीरिक परिवर्तनों, स्वास्थ्य एवं रुचि के अनुसार आहार दिया जाना चाहिए, जिससे उन्हें संतुष्टि मिल सके। यदि वे असंतुष्ट होते हैं, वे चिड़चिड़े हो जाते हैं।
(2) पूर्ण विश्राम व निद्रा:
वृद्धावस्था में विश्राम व निद्रा का महत्त्व अधिक होता है। शारीरिक निष्क्रियता के कारण वृद्धों को पहले से कम नींद आती है। वृद्धों का कमरा शोरगुल से दूर होना चाहिये जिससे कि वे चैन की नींद सो सकें।
(3) आवास:
स्वयं के द्वारा बनाये गये आवास में ही व्यक्ति को आत्मसंतुष्टि प्राप्त होती है। परन्तु कई बार आर्थिक परिस्थितियों एवं आर्थिक कारणों से आवास छोड़ने को मजबूर होना पड़ता है। ऐसी स्थिति में वृद्धों को नये आवास में समायोजन करना पड़ता है। यह समायोजन उनके लिये अत्यन्त कष्टदायी होता है। वृद्धों का कैमरा ठंडा नहीं होना चाहिए तथा उसमें बड़ी खिड़कियाँ तथा पर्याप्त रोशनी होनी चाहिए।
(4) चिकित्सा सुविधाएँ:
वृद्धों की रोग प्रतिरोधक क्षमता आयु के बढ़ने के साथ कम होती चली जाती है। अतः वृद्ध जल्दी – जल्दी बीमार होने लगते हैं। उन्हें अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं। अतः उन्हें नियमित चिकित्सा सुविधाओं की आवश्यकता पड़ती है। कई बार आर्थिक संकट के कारण वे अपना इलाज नहीं करा पाते हैं।
(5) सक्रियता:
वृद्धों को यदि परिवार के सदस्यों से स्नेह व सम्मान पर्याप्त मात्रा में मिलता रहता है तो वे सक्रिय रहते हैं। वे परिवार के सभी कार्यों में सहयोग भी करते रहते हैं। वृद्ध अपने खाली समय में छोटा – मोटा काम – धन्धा करके धन भी अर्जित कर सकते हैं। इस धन से वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद वे समाज सेवा कार्य में भी सक्रिय रूप से भाग ले सकते हैं। इससे वे अपने को अकेला महसूस नहीं करेंगे तथा समाज को भी उनके अनुभवों का लाभ प्राप्त होता है। अत: परिवार के सदस्यों का यह दायित्व होना चाहिए कि वे वृद्धों को सक्रिय रहने के लिये प्रेरित करते रहें।
(6) आर्थिक सहायता:
हर व्यक्ति भविष्य के लिये कुछ धन पूँजी के रूप में रखता है जिससे वह धन विपरीत परिस्थितियों में काम आ सके। बुढ़ापा भी एक ऐसा ही समय है जब व्यक्ति शारीरिक रूप से इतना सक्षम नहीं रह पाता कि वह धन कमा सके। सभी सन्तानें ऐसी नहीं होती हैं। जो वृद्धों को स्नेह व सम्मान दे सकें अत: कभी – कभी वृद्ध अपनी सन्तानों से अलग रहना अधिक पसन्द करते हैं।
यदि वृद्ध लोगों को सुखी रखना है तो उनके लिये यही पर्याप्त है कि समाज उनकी शारीरिक और आर्थिक आवश्यकताएँ पूरी करें। वृद्धावस्था में सुखी रहने का अर्थ वृद्धों का स्वस्थ रहना, आर्थिक रूप से सुरक्षित होना, अकेला न रहना, उपेक्षित न रहना तथा संतुष्ट रहना ही है। परिवार के सभी सदस्यों को वृद्धों का विशेष ध्यान रखना चाहिये तथा समय-समय पर उनकी आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करते रहना चाहिए।