व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए वंशानुक्रम अधिक उत्तरदायी है या वातावरण, यह एक विवादास्पद प्रश्न है इस बारे में मनोवैज्ञानिक और विद्वान स्पष्ट रूप से दो पक्षों में विभाजित है। एक पक्ष वंशानुक्रम को अधिक महत्व देना चाहता है तो दूसरा वातावरण को। कट्टर वंशानुक्रमवादी व्यक्तित्व के विकास के लिए वंशानुक्रम को ही सब प्रकार से उत्तरदायी ठहराते हैं। इनके अनुसार व्यक्तित्व के निर्माण में शिक्षा, प्रशिक्षण और अन्य वातावरण सम्बन्धी शक्तियों के कार्य की तुलना लकड़ी की कुर्सी, मेज इत्यादि फर्नीचर पर पॉलिश या रंग करने के कार्य से की जा सकती है।
जिस तरह कोई भी अच्छी से अच्छी, पॉलिश या पेंट, मेज, कुर्सी या फर्नीचर में लगी हुई आम की लकड़ी को सागवान या शीशम की नहीं बना सकता, वह उसे चमका कर उसकी शोभा या आयु में केवल नाममात्र की वृद्धि कर सकता है, उसी तरह अच्छे से अच्छा वातावरण भी बच्चे की मूल प्रवृत्ति या विकास क्रम को नहीं बदल सकता। वह वही बनता है जो वंशानुक्रम द्वारा तय किया हुआ है।
दूसरी ओर कट्टर वातावरणवादी व्यक्तित्व के विकास में वंशानुक्रम को कोई भी भूमिका नहीं देना चाहते। व्यक्ति को अपने माता-पिता या पूर्वज से कुछ गुण या विशेषताएँ विरासत में मिलती हैं। इस बात को ये केवल कल्पना का महल समझते हैं। इसके अनुसार एक बालक वही बनता है जो उसका वातावरण उसे बनाता है। जो कुछ एक व्यक्ति ने किया है दूसरा भी अगर उसे समुचित वातावरण तथा अवसर प्राप्त हो जाए, वही कर सकता है। इस तरह से कोई भी बालक आगे जाकर गाँधी, लिंकन, शिवाजी या राणा प्रताप बन सकता है। वातावरण की शक्तियों पर अपनी अटूट आस्था व्यक्त करते हुए ‘वाट्यान’ जैसे वातावरणवादी ने तो यहाँ तक कह दिया कि, “आप मुझे कोई बालक दें, मैं उसे वही बना दूँगा जो आप चाहते हैं।”
इस तरह से वातावरण के पक्ष के विद्वान बालक की वृद्धि व विकास के लिए वातावरण को ही प्रमुख मानकर चलना चाहते हैं। अतः अपने-अपने विचारों की पुष्टि के लिए वंशानुक्रमवादी एवं वातावरणवादी दोनों ही मनोवैज्ञानिक प्रयोगों एवं परीक्षणों का आश्रय लेते रहे हैं। इनके परिणामों के आधार पर वे वंशानुक्रम और वातावरण दोनों की सापेक्ष महत्ता पर टिप्पणी भी करते रहे हैं।