किसी भी पहलू से सम्बन्धित वृद्धि व विकास को दूसरे पहलुओं से सम्बन्धित वृद्धि एवं विकास पर्याप्त मात्रा में प्रभावित करते हैं। शारीरिक वृद्धि व विकास के सम्बन्ध में भी यह बात पूरी तरह ठीक है। इस प्रकार से शारीरिक विकास व्यक्तित्व के सभी पक्षों के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अत: इस पर पूरा-पूरा ध्यान दिया जाना आवश्यक है। बच्चों का सर्वांगीण विकास करना शिक्षा का एक अहम् उद्देश्य है। इसलिए अध्यापक को शारीरिक वृद्धि और विकास की प्रक्रिया से अपने आपको परिचित करना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है।
विशेष तौर पर इस प्रकार का ज्ञान उसे निम्न रूप में सहायक सिद्ध हो सकता है –
- शारीरिक रूप से असामान्य बच्चों से वह परिचित हो सकता है। उनके मनोविज्ञान और समायोजन सम्बन्धी समस्याओं से भी वह अवगत हो सकता है।
- बालकों के समुचित विकास के लिए उनके शारीरिक स्वास्थ्य और विकास का ध्यान रखना भी अध्यापक का परम कर्त्तव्य है। शारीरिक वृद्धि व विकास की प्रक्रिया से परिचित होने से उसे इस कार्य में सहायता मिल सकती है।
- बच्चों की आवश्यकताएँ, रुचियाँ तथा एक तरह से उसका सम्पूर्ण व्यवहार शारीरिक वृद्धि और विकास पर निर्भर करता है।
इस दृष्टिकोण से एक बच्चा वृद्धि और विकास की विभिन्न अवस्थाओं के किसी भी वर्ग विशेष में किस प्रकार का व्यवहार करेगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए बाल्यावस्था में होने वाले शारीरिक विकास से परिचित हो जाने के बाद उनकी शारीरिक, संवेगात्मक और सामाजिक आवश्यकताओं को समझने में बहुत सहायता मिलती है। इस प्रकार के ज्ञान द्वारा अध्यापकों के लिए बालकों को उनके भली-भाँति समायोजित होने, उनकी समस्याओं को सुलझाने और आवश्यकताओं को पूरा करने में आसानी हो सकती है।
अतः इस प्रकार से शारीरिक वृद्धि व विकास की प्रक्रिया का ज्ञान अध्यापक को अपने उद्देश्यों की पूर्ति में बहुत अधिक सहयोग दे सकता है। इस ज्ञान से न केवल वह विद्यार्थी की आवश्यकता को जान सकता है, बल्कि वह उन्हें अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने और शारीरिक योग्यताओं और क्षमताओं को पर्याप्त विकसित करने में भी भरपूर सहयोग दे सकता है।