व्यक्तित्व की विशेषताएँ:
1. व्यक्तित्व अपूर्व और विशिष्ट होता है समाज में प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व अपने ही ढंग का होता है। कोई भी दो व्यक्ति, चाहे वह समरूप यमज (Identification) ही क्यों न हो, किसी भी समय बिल्कुल एक जैसा व्यवहार नहीं करते हैं।
2. व्यक्तित्व की दूसरी विशेषता उसकी आत्म-चेतना (Self-consciousness) है। जब व्यक्ति में आत्म चेतना जैसी वस्तु घर करने लगती है, तभी से उसके व्यक्तित्व का अस्तित्व प्रकाश में आता है।
3. सीखना (Learning) और अनुभवों का अर्जन, दोनों व्यक्तित्व के विकास में पूरी तरह से सहायक होते हैं। सीखने और अर्जन सम्बन्धी प्रक्रिया के फलस्वरूप व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
4. व्यक्तित्व वंशानुक्रम और वातावरण की संयुक्त उपज है। बच्चे के व्यक्तित्व का समुचित विकास करने में दोनों ही अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं।
5. व्यक्तित्व जड़ नहीं बल्कि गतिशील और निरन्तर परिवर्तित होने वाली वस्तु है। अपने समायोजन के लिए जो कुछ भी जरूरी होता है, व्यक्ति का व्यक्तित्व उसे वह सब कुछ देता है। समायोजन एक सतत् प्रक्रिया है। व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक समायोजन के लिए संघर्षरत रहता है। इस तरह व्यक्तित्व अस्थिर वस्तु न होकर गतिशील व परिवर्तनशील वस्तु बन जाता है।
6. व्यक्ति के व्यक्तित्व में सब कुछ निहित होता है। व्यक्तित्व वह सब कुछ है जो एक व्यक्ति अपने पास रखता है। इसमें व्यवहार के तीनों पक्ष-ज्ञानात्मक, क्रियात्मक व भावात्मक सम्मिलित हैं तथा इसका क्षेत्र केवल चेतन अवस्था में किए गए व्यवहार तक ही नहीं बल्कि अर्द्ध-चेतन (semi – conscious) और अचेतन व्यवहार तक फैला हुआ है।
अतः उपरोक्त विशेषताओं से यह बात स्पष्ट होती है कि व्यक्तित्व व्यक्ति के जीवन का एक महत्वपूर्ण आधार है, जिसके अनुसार वह समाज में रहते हुए अपना जीवन-यापन करता है।