मानव व्यवहार तथा व्यक्तित्व को प्रभावित करने की दृष्टि से मनोवैज्ञानिक कारक काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
मनोवैज्ञानिक कारकों का वर्णन अग्र प्रकार से है –
1. बुद्धि तथा मानसिक विकास: बालक की बुद्धि और मानसिक विकास का उसके व्यक्तित्व के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। व्यक्ति का सम्पूर्ण समायोजन, सीखने की प्रक्रिया, निर्णय लेने की क्षमता तथा समझदारी आदि सभी कुछ उसके बौद्धिक विकास पर ही निर्भर करता है। एक प्रकार से व्यक्ति का सम्पूर्ण व्यवहार उसकी बुद्धि से ही नियमित रहता है।
2. रुचियाँ एवं दृष्टिकोण: हमारा व्यवहार किन्हीं वस्तुओं, विचारों या व्यक्तियों के प्रति जैसा रहता है, यह बहुत कुछ हमारी रुचियों व दृष्टिकोणों पर निर्भर करता है। हम उन्हीं बातों को कहना, सुनना तथा करना चाहते हैं जिनमें हमारी किसी न किसी रूप में रुचि होती है।
3. इच्छा शक्ति: इच्छा शक्ति को व्यवहार का नियंत्रक और चालक शक्ति कहा जाता है। दृढ़ इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति संवेगात्मक रूप से काफी संतुलित पाए जाते हैं। इसके विपरीत कमजोर इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व भी कमजोर साँचे में ढला रहता है व सर्वथा असमंजस की स्थिति में रहता है। उसे खुद पर विश्वास नहीं होता है। अत: कुछ विशेष सफलता प्राप्त करने की बात उसके जीवन में कम ही होती है। इस प्रकार इच्छा शक्ति की सबलता व निर्बलता व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण में काफी अंतर पैदा कर देती है।
4. संवेगात्मक और स्वभावगत विशेषताएँ: व्यक्ति का स्वभाव तथा संवेगात्मक विशेषताएँ उसके व्यवहार एवं व्यक्तित्व को दिशा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। व्यक्ति में जिस प्रकार के सकारात्मक एवं नकारात्मक संवेगों की अधिकता होगी, संवेगात्मक परिपक्वता का जो स्तर होगा, स्वभावगत जैसी प्रवृत्ति व विशेषताएँ होंगी, आदतों, भावनाओं तथा स्थायी भावों का जिस प्रकार का संगठन होगा, उसका व्यक्तियों, विचारों एवं वस्तुओं के प्रति वैसा ही दृष्टिकोण बनेगा तथा उसका व्यवहार व व्यक्तित्व उसी प्रकार के रंग में रंगा हुआ दिखाई देगा।
इसी प्रकार स्वभावगत विशेषताएँ व्यक्तित्व को साँचों में ढालने की भूमिका निभाती रहती है। अत: उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि व्यक्तित्व के निर्माण में मनोवैज्ञानिक कारकों की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है।