सामाजिक कारकों की भूमिका:
1. माता-पिता: माता-पिता की शिक्षा, उनके व्यक्तित्व सम्बन्धी गुण, संवेगात्मक और सामाजिक व्यवहार, उनके आपसी सम्बन्ध तथा चरित्र का बच्चों के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है।
2. माता-पिता का बच्चे के प्रति दृष्टिकोण: बच्चे के साथ माता-पिता किस प्रकार का व्यवहार करते हैं, वे अधिक लाड़ अथवा उनकी उपेक्षा करते हैं, इन बातों का प्रभाव भी बच्चों के व्यक्तित्व पर पड़ता है।
3. पास-पड़ोस: पड़ोस में रहने वाले व्यक्तियों के बच्चे जो रहते हैं वे जिन बालकों के साथ खेलते हैं व समय व्यतीत करते हैं उन सभी का व्यवहार बालक के व्यक्तित्व पर दिखायी देता है। यही कारण है कि अच्छे पड़ोस की ओर ध्यान दिया जाना बालकों के व्यक्तित्व के सही विकास के लिए सबसे आवश्यक बात मानी जाती है।
4. पारिवारिक स्थिति व आदर्श: परिवार की सामाजिक व आर्थिक स्थिति कैसी है, वह किन मूल्यों अथवा विश्वासों में श्रद्धा रखते हैं, किस संस्कृति व धर्म को अपनाते हैं, इन बातों का प्रभाव भी बच्चे के व्यक्तित्व पर पड़ता है।
5. धार्मिक संस्थाएँ: गुरुद्वारे तथा चर्च आदि धार्मिक स्थान, उनमें चलने वाली धार्मिक तथा सामाजिक गतिविधियाँ आदि बालक से दिल तथा दिमाग पर शुरू से ही बड़े ही शान्त रूप में गम्भीर एवं स्थायी प्रभाव छोड़ने की क्षमता रखते हैं व इस तरह उसके व्यवहार एवं व्यक्तित्व के निर्धारण में अपनी शक्तिशाली भूमिका निभाते हैं।
6. अन्य सामाजिक संस्थाएँ, संगठन एवं साधन: अनेक प्रकार की सामाजिक संस्थाएँ, क्लब, मनोरंजन तथा सम्प्रेषण के साधन (रेडियो, टेलीविजन, फिल्म आदि) साहित्यिक तथा ललित कलाओं से सम्बन्धित संस्थाएँ, पत्र-पत्रिकाएँ आदि बालक के व्यक्तित्व को ढालने में काफी प्रभावकारी सिद्ध हो सकते हैं।
अत: उपरोक्त कारकों से यह विदित होता है कि बालक अपने चारों ओर फैले सामाजिक वातावरण में जो कुछ भी देखते हैं उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करते हैं और उसी के अनुकूल उनका व्यक्तित्व भी इसी साँचे में ढलता चला जाता है।